Shab-e-Barat के खास मौके पर Jama Masjid को मिला नया शाही इमाम, अहमद बुखारी ने बेटे अपना उत्तराधिकारी घोषित किया

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देशभर के मुस्लिमों ने रविवार रात को ‘शब-ए-बारात’ का त्योहार मनाया। इस त्योहार को ‘माफी की रात’ भी कहा जाता है। ये मुस्लिमों का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो इस्लामी कैलेंडर के आठवें महीने शाबान की 14वीं और 15वीं रात को मनाया जाता है। ‘शब-ए-बारात’ के मौके पर दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने ‘दस्तारबंदी’ समारोह का आयोजन किया। इस समारोह में उन्होंने अपने बेटे शाबान बुखारी को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। बता दें, इस समारोह में पहले प्रार्थना की जाती है। फिर अगले इमाम के सिर पर ‘दस्तारबंदी (पगड़ी)’ बांधी जाती है। ‘शब-ए-बारात’ के खास मौके पर सैयद अहमद बुखारी ने कहा, ‘यह इबादत की रात है। यह गुनाहों से माफी की रात है। सभी को खामोशी से इबादत करनी चाहिए और बाद में सभी को अपने-अपने घर चले जाना चाहिए।’
दिल्ली की जामा मस्जिद के अलावा निज़ामुद्दीन दरगाह में भी शब-ए-बारात का त्योहार मनाया गया। बड़ी संख्या में लोग दरगाह पर पहुंचे और प्रार्थना की। शब-ए-बारात समारोह के मद्देनजर दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने राष्ट्रीय राजधानी में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुख्ता इंतजाम किये हुए थे।
 

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श्रीनगर की हजरतबल दरगाह को रोशनी से सजाया गया और मुंबई के ‘बड़ा कब्रिस्तान’ में पहुंचकर लोगों ने प्रार्थना की। मुंबई में जुम्मा मस्जिद के ट्रस्टी शोएब खतीब ने कहा, ‘मुंबई के बड़ा कब्रिस्तान का इतिहास 200 साल पुराना है। यह 8 एकड़ में फैला हुआ है। जिन लोगों का निधन हो चुका है उनके लोग यहां आकर उनके लिए प्रार्थना करते हैं। मुंबई पुलिस ने शानदार इंतजाम किए हैं। जो भी दिशानिर्देश बने, सभी ने उनका पालन किया। यहां आने वाले लोग शांतिपूर्वक पूजा भी करते हैं। मस्जिद ट्रस्ट शब-ए-बारात से एक महीने पहले से ही इंतजाम कर लेता है।’
 

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‘शब’ फारसी मूल का शब्द है, जिसका अर्थ रात होता है। ‘बारात’ की बात करें तो ये एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ मोक्ष और क्षमा है। इसलिए शब-ए-बारात माफी मांगने के लिए है। दुनिया भर के मुसलमान ‘शब-ए-बारात’ की रात को अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं। शब-ए-बारात का त्योहार दक्षिण एशिया के भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, अजरबैजान, तुर्की और मध्य एशियाई देश जैसे उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और किर्गिस्तान में मनाया जाता है।



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