यूक्रेन से निकाले गए 1000 से अधिक भारतीय एमबीबीएस छात्रों ने उज्बेकिस्तान में शुरू की पढ़ाई

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युद्ध प्रभावित यूक्रेन से 2021 में सुरक्षित निकाले गए सैकड़ों भारतीय एमबीबीएस छात्रों ने अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर दी है और उज्बेकिस्तान के एक अग्रणी चिकित्सा विश्वविद्यालय में नया शैक्षणिक जीवन शुरू किया है।
उज्बेकिस्तान में समरकंद स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी ने यूक्रेन के 1,000 से अधिक भारतीय मेडिकल छात्रों को यूक्रेन में भारतीय दूतावास द्वारा यह पूछे जाने के बाद समायोजित किया है कि क्या प्रभावित छात्र स्थानांतरित किए जा सकते हैं।
बिहार के बेगूसराय निवासी अमित ने रूस के हमले के समय यूक्रेन में एक रात एक तहखाने में बिताई थी। वह ऑपरेशन गंगा पहल के तहत भारत सरकार द्वारा निकाले गए छात्रों में से एक थे।
ऑपरेशन गंगा यूक्रेन में फंसे भारतीयों को वापस लाने के लिए भारत सरकार द्वारा शुरू की गई पहल थी। इस पहल के तहत कुल 18,282 भारतीय नागरिकों को सुरक्षित निकाला गया था।

अमित ने पीटीआई से कहा, “मैंने सोचा था कि मैं इसमें सफल नहीं हो पाऊंगा और या तो मर जाऊंगा या यूक्रेन में फंस जाऊंगा। जब मैं भारत में घर वापस पहुंचा, तो मुझे और मेरे परिवार को राहत मिली, लेकिन फिर आगे क्या होगा इसके बारे में अनिश्चितता का कभी न खत्म होने वाला चक्र शुरू हुआ। मैंने यूक्रेन में अपने एमबीबीएस के तीन साल पूरे कर लिए थे तथा सबकुछ फिर से शुरू करना या कुछ और करना कोई ऐसा विकल्प नहीं था जिस पर मैं विचार करना चाहता था। बाद में मैंने उज्बेकिस्तान आने का फैसला किया।”
उन्होंने कहा कि समरकंद में रहने का खर्च यूक्रेन की तुलना में अधिक है लेकिन वह अपनी शिक्षा जारी रखने में सक्षम होने से खुश हैं।
पंजाब के फिरोजपुर की तन्वी वाधवा यूक्रेन में बुकोविनियन स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी की छात्रा थीं और एक सेमेस्टर के नुकसान के कारण विश्वविद्यालय से जुड़नेको लेकर आशंकित थीं।

उन्होंने कहा, “मैंने आठ महीने तक ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लिया। हमें उम्मीद थी कि युद्ध ख़त्म होगा और हम वापस जाएंगे। कुछ छात्र अलग-अलग रास्तों से वापस भी चले गए लेकिन मैं यह जोखिम नहीं लेना चाहती थी। मैंने जॉर्जिया से पोलैंड तक सभी विकल्पों का मूल्यांकन किया और उज़्बेकिस्तान आने का फैसला किया। विश्वविद्यालय ने हमें एक सेमेस्टर पहले के हिसाब से प्रवेश दिया, मुझे शुरू में एक सेमेस्टर के नुकसान का डर था लेकिन बाद में मैंने अपना मन बदल लिया और यह निर्णय ठीक रहा।’’
मेरठ के दिव्यांश भी वाधवा के साथ उसी विश्वविद्यालय में पढ़ते थे। उन्होंने कहा कि उज्बेकिस्तान के विश्वविद्यालयों ने अंग्रेजी में शिक्षण और सीखने की पेशकश की तथा पाठ्यक्रम भी उसी तर्ज पर है।
उन्होंने कहा, “सभी देशों में ऐसे विश्वविद्यालय नहीं हैं जो शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी की पेशकश करते हैं। तो यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारक था। यूक्रेन और समरकंद में जीवन की गुणवत्ता समान है लेकिन यह जगह अब अधिक सुरक्षित महसूस होती है।”

फरवरी 2021 में जब रूस का आक्रमण शुरू हुआ तो उस समय लगभग 19,000 भारतीय छात्र यूक्रेन में पढ़ रहे थे।
अनुमान के मुताबिक, लगभग 2,000 भारतीय छात्र यूक्रेन वापस चले गए हैं और इनमें से ज्यादातर पूर्वी यूरोपीय देश के पश्चिमी हिस्से में रह रहे हैं।
यूक्रेन से निकाले जाने के बाद अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए दूसरे देशों के विश्वविद्यालयों में स्थानांतरित होने के सिवाय उनके पास कोई विकल्प नहीं था। कई छात्र रूस, सर्बिया और अन्य यूरोपीय देशों में चले गए हैं।
समरकंद स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. जफर अमीनोव ने कहा कि जब युद्ध छिड़ गया, तो भारतीय दूतावास ने उनसे संपर्क किया और पूछा कि क्या प्रभावित छात्र स्थानांतरित किए जा सकते हैं।
उन्होंने कहा, “हमने ऐसे छात्रों की आवश्यकताओं का मूल्यांकन किया और फिर अंततः निर्णय लिया कि उन्हें समकक्षता प्रदान करने के लिए एक सेमेस्टर पहले नामांकित करना एक व्यवहार्य विकल्प होगा। फिर हमने स्थानांतरण की सुविधा के लिए एक टीम गठित की और इन छात्रों के लिए विशेष व्यवस्था भी की।

हमने यह सुनिश्चित करने के लिए 30 और भारतीय शिक्षकों को नियुक्त किया कि उच्चारण संबंधी कोई समस्या न हो।
अमीनोव ने कहा कि विश्वविद्यालय ने यूक्रेन से स्थानांतरित होकर आए 1,000 से अधिक भारतीय छात्रों को जगह दी है।
कर्नाटक निवासी छात्रा दीपिका कैडाला जयरमैया ने कहा कि युद्ध की स्थिति को सामने देखने के बादकिसी शांतिपूर्ण देश में जाना प्राथमिकता था।
उन्होंने कहा, “मैंने युद्ध के बारे में केवल इतिहास की किताबों में पढ़ा है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं इस स्थिति को प्रत्यक्ष रूप से देखूंगी। जब यह स्पष्ट हो गया कि यूक्रेन जाना अब कोई विकल्प नहीं है तो मैंने उज्बेकिस्तान में अपनी चिकित्सा यात्रा फिर से शुरू करने का फैसला किया।



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