Prajatantra: Sisodia को क्यों नहीं मिल रही बेल, क्या Kejriwal की छवि पर भी पड़ रहा असर

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सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली आबकारी नीति मामले में आम आदमी पार्टी (आप) के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की अंतरिम जमानत याचिका पर केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को शुक्रवार को 28 जुलाई तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। दिल्ली सरकार ने 17 नवंबर 2021 को नीति लागू की थी, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच सितंबर 2022 के आखिर में इसे वापस ले लिया गया। दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री सिसोदिया के पास आबकारी विभाग भी था। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने उन्हें ‘‘घोटाले’’ में उनकी कथित भूमिका के लिए पहली बार 26 फरवरी को गिरफ्तार किया था और तब से वह हिरासत में हैं। वहीं ED ने मनी लॉन्ड्रिंग केस के तहत 9 मार्च को सिसोदिया की गिरफ्तारी की थी। उन्होंने 28 फरवरी को दिल्ली मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। दोनों ही मामलों में जमानत के लिए सिसोदिया ने पहले दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया था।
 

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हाई कोर्ट ने क्या कहा था

उच्च न्यायालय ने 30 मई को सीबीआई के मामले में मनीष सिसोदिया को जमानत देने से इनकार कर दिया था। उच्च न्यायालय ने अपने 30 मई के आदेश में कहा था कि चूंकि कथित घोटाले के वक्त सिसोदिया ‘‘उच्च पद पर आसीन’’ थे, तो वह यह नहीं कह सकते कि इसमें उनकी कोई भूमिका नहीं थी। कोर्ट ने सिसोदिया को यह कहते हुए जमानत देने से इनकार कर दिया था कि उपमुख्यमंत्री तथा आबकारी मंत्री के पद पर रहने के कारण वह एक ‘‘हाई प्रोफाइल’’ व्यक्ति हैं जो गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि उनकी पार्टी अब भी राष्ट्रीय राजधानी में सत्ता में है तो 18 विभाग संभाल चुके सिसोदिया का अब भी प्रभाव है और चूंकि ज्यादातर गवाह सरकारी सेवक हैं तो उन्हें प्रभावित किए जाने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। उच्च न्यायालय ने तीन जुलाई को आबकारी नीति से जुड़े कथित घोटाले से संबंधित धन शोधन के मामले में सिसोदिया की जमानत याचिका खारिज कर दी थी।

जारी है राजनीति

मनीष सिसोदिया को बार-बार जमानत नहीं मिलना कहीं ना कहीं अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए बड़ा झटका है। भले ही अरविंद केजरीवाल यह दावा करते रहे हो कि उनकी सरकार कट्टर ईमानदार है लेकिन कहीं ना कहीं मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन की वजह से उस पर दाग तो जरूर लग गए हैं। मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी को लेकर लगातार अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी की ओर से केंद्र सरकार और भाजपा पर निशाना साधा जाता है। केजरीवाल खुद बार-बार कहते हैं कि सिसोदिया को अच्छे स्कूल और दिल्ली के बच्चों को अच्छी शिक्षा मुहैया कराने की सजा मिल रही है। एक बार तो सिसोदिया कोई याद कर अरविंद केजरीवाल भावुक भी हो गए थे। उन्होंने इतना तक कह दिया था कि अगर प्रधानमंत्री पढ़े लिखे होते तो ऐसा वह कभी नहीं करते। सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद विपक्षी दलों ने भी इसको लेकर प्रधानमंत्री मोदी को एक पत्र लिखा था। इस पत्र में केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का भी आरोप लगाया गया था। दूसरी ओर भाजपा लगातार पूरे मामले को लेकर पलटवार करती रही है। भाजपा का कहना यह है कि अरविंद केजरीवाल अब चोरों के सरदार हो गए हैं। भाजपा लगातार केजरीवाल सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाती रही है। भाजपा ने तो यह भी कह दिया कि जैसे-जैसे घोटाले की तार मुख्यमंत्री तक पहुंच रही है, वैसे-वैसे उनकी चिंता बढ़ती जा रही है। 

केजरीवाल की छवि पर असर

अरविंद केजरीवाल लगातार दावा करते हैं कि वे लोगों के लिए काम कर रहे हैं। दिल्ली में उन्होंने अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था की है। इससे भाजपा को दिक्कत है और यही कारण है कि भाजपा और केंद्र सरकार उन्हें काम करने नहीं देती है। केजरीवाल चाहे अपने बयान में कुछ भी कहे लेकिन अदालत से बार-बार सिसोदिया की जमानत याचिका खारिज होना, उनकी सरकार पर सवाल खड़े कर रहा है। बड़ा सवाल यही है कि अगर सिसोदिया ने कोई अपराध नहीं किया है तो उन्हें अदालत ने जमानत क्यों नहीं दी? अगर केजरीवाल सिसोदिया को बेदाग बताने की कोशिश कर रहे हैं तो फिर सवाल यह है कि क्या उन्हें देश की अदालत पर भरोसा नहीं? पहले सत्येंद्र जैन और फिर मनीष सिसोदिया के जेल जाने के बाद कहीं ना कहीं अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार पर हमलावर होने का विपक्ष को भी बड़ा मौका मिल गया है। 
 

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याद कीजिए 2011-12 का वो दौर जब दिल्ली में अन्ना हजारे के नेतृत्व में आंदोलन हो रहा था। उस वक्त अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया उस आंदोलन के बड़े चेहरों में थे। बाद में केजरीवाल और सिसोदिया ने अन्ना हजारे की मर्जी के खिलाफ जाकर पार्टी बना ली। दावा किया गया कि गंदगी साफ करने के लिए नाले में उतरना पड़ता है। उस दौरान केजरीवाल की ओर से कई नेताओं पर आरोप भी लगाए गए। हालांकि आज केजरीवाल उन्हीं नेताओं के साथ खड़े होकर फोटो खींचवाते हैं और उनसे मदद मांगते हैं। केजरीवाल ने आम लोगों की राजनीति की बात की थी, कभी भी सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं उठाने की बात कही थी। हालांकि, आज वह ठीक इसके विपरीत कर रहे हैं। अक्सर हमने देखा है कि चुनाव से पहले नेताओं के जो बोल होते हैं, वह चुनाव के बाद बदल जाते हैं। लोकतंत्र में जनता को लगातार नेताओं के चुनावी जुमलों का सामना करना पड़ता है। यही तो प्रजातंत्र है। 



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