Sengol History: पद्मा सुब्रमण्यम के खत में क्या था ऐसा खास, जिसके बाद शुरू हुई सेंगोल की तलाश, पीएम मोदी का आदेश और खोजने में ऐसे लगे 2 साल

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देश आजादी की 75वीं सालगिरह मना रहा है तो आत्मनिर्भर भारत की एक नई मिसाल पेश करेगा संसद का ये नया भवन जिसका उद्घाटन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा 28 मई को किया जाएगा। यह नए भारत में सबसे बड़ी मील का पत्थर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को नए संसद भवन के उद्घाटन करेंगे। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्पीकर की सीट के पास सेंगोल नामक एक ऐतिहासिक स्वर्ण राजदंड स्थापित करेंगे। सेंगोल को लेकर आपने कई सारी स्टोरीज पढ़ी होंगी। लेकिन आपको बताते हैं कि आखिर किसकी चिट्ठी की वजह से प्रधानमंत्री को सेंगोल के बारे में जानकारी मिली। जिसे देशभर में ढूढ़ने के बाद कहां पाया गया। 

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अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक 
सेंगोल का नाम तमिल शब्द ‘सेम्मई’ से लिया गया है, जिसका अर्थ धार्मिकता है। राजदंड स्वतंत्रता का एक ऐतिहासिक प्रतीक है क्योंकि यह अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक है। सेंगोल चांदी से बना है। इस पर सोने की परत चढ़ी है। इसके शीर्ष पर नंदी विराजमान हैं जोकि न्याय का प्रतीक हैं। भारत की स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा देश के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू को सौंपा गया था।

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पद्मा सुब्रमण्यम ने पीएम को पत्र लिखकर दी जानकारी
प्रधानमंत्री कार्यालय को सेंगोल के बारे में करीब दो साल पहले एक पत्र के माध्यम से पता चला। मशहूर डांसर पद्मा सुब्रमण्यम ने प्रधानमंत्री कार्यालय को इस बाबत एक चिट्ठी लिखी। इंडिया टुडे को दिए साक्षात्कार में पद्मा सुब्रमण्यम ने बताया कि पीएमओ को लिखी चिट्ठी में उन्होंने तमिल मैगजीन ‘तुगलक’ के एक आर्टिकल का हवाला दिया। जिसमें 1947 में पंडित नेहरू को सेंगोल सौंपने की बात कही गई थी। कांची महास्वामी ने इसके बारे में मेटुस्वामी से बात की थी और फिर पूरी बात सुब्रह्मण्यम की तेवरम नामक तीन किताबों की सीरिज में भी ये बातें दोहराई गई हैं। सुब्रह्मण्यम ने कांची महास्वामी को सेंगोल के संबंध में उद्धृत किया है। तमिल संस्कृति में सेंगोल का बहुत महत्व है। सेंगोल केवल शक्ति ही नहीं न्याय का भी प्रतीक है। 
मंत्रालय की टीम ढूंढ़ने में लगी
पीएमओ को डांसर पद्मा सुब्रमण्यम से मिली चिट्ठी प्राप्त होने के बाद सांस्कृति मंत्रालय एक्टिव हो गया। उन्होंने इंदिरा गांधी सेंटर फॉर आर्ट्स के एक्सपर्ट्स की मदद से सेंगोल की खोज शुरू की। विशेषज्ञों ने नेशनल आर्काइल ऑफ इंडिया से लेकर उस वक्त के तमाम अखबारों और दस्तावेजों में इसकी खोज की। आखिरकार सेंगोल इलाहबाद के म्युजियम में मिला। 



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