#MyParliamentMyPride: Omar Abdullah नयी संसद की भव्यता से खुश तो Nitish Kumar बोले इतिहास बदलना चाहती है BJP

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एक ओर नये संसद भवन के उद्घाटन का समय करीब आ रहा है तो दूसरी ओर उद्घाटन समारोह का बहिष्कार कर रहे नेताओं के खिलाफ देश की जनता आक्रोश व्यक्त कर रही है। यही कारण है कि कुछ विपक्षी नेताओं के सुर बदलने भी लगे हैं। हालांकि नीतीश कुमार जैसे नये नये मोदी विरोधी बने नेता अब भी संसद के नये भवन के निर्माण पर ही सवाल उठा रहे हैं तो दूसरी ओर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि इन नेताओं को जनता ही सबक सिखायेगी। इस बीच सेंगोल को लेकर कांग्रेस की ओर से पैदा किये जा रहे विवाद पर तमिलनाडु के मठ नाराजगी जता रहे हैं।
नेताओं की प्रतिक्रियाएं
बहरहाल, विपक्ष के नेताओं के बदलते सुर की बात करें तो आपको बता दें कि नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भले नये संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार किया हो मगर पार्टी के वरिष्ठ नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि नया संसद भवन स्वागत योग्य है और यह भव्य दिखता है। अब्दुल्ला ने कहा कि जब वह लोकसभा सदस्य थे, तब उनके कई सहकर्मी एक नये और बेहतर संसद भवन की जरूरत को लेकर अक्सर बातें किया करते थे। नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने एक ट्वीट में कहा, “इसके उद्घाटन को लेकर मचे घमासान को कुछ क्षणों के लिए एक तरफ रख देते हैं। यह (नया संसद भवन) स्वागत करने योग्य है। पुराने संसद भवन का शानदार योगदान रहा है, लेकिन वहां कुछ वर्षों तक काम करने वाले व्यक्ति के तौर पर, हममें से बहुत से लोग नये और बेहतर संसद भवन की जरूरत के बारे में अक्सर आपस में बात करते थे।” उन्होंने कहा कि ‘देर आये दुरुस्त आये’, और यह (नया संसद भवन) भव्य दिखता है। हम आपको बता दें कि कांग्रेस, वाम दल, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी, समेत 19 विपक्षी दलों ने बुधवार को ऐलान किया था कि वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा नये संसद भवन का उद्धाटन किये जाने का बहिष्कार करेंगे। विपक्षी दलों के संयुक्त पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में नेशनल कॉन्फ्रेंस भी शामिल है।
इसी प्रकार, डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी के प्रमुख गुलाम नबी आज़ाद ने कहा है कि अगर मैं दिल्ली में होता तो नए संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम में जरूर जाता। उन्होंने कहा कि मैं सरकार को रिकॉर्ड टाइम में इसे बनाने के लिए बधाई देता हूं। उन्होंने कहा कि विपक्ष भी सरकार को बधाई देता तो अच्छा होता लेकिन वह बहिष्कार कर रहा है। उन्होंने कहा कि मैं इस विवाद के ख़िलाफ़ हूं। राष्ट्रपति भी कौन-सा विपक्ष का है? वह भी भाजपा के सांसदों द्वारा चुने गए हैं।
दूसरी ओर, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नयी संसद के निर्माण पर ही सवाल उठाते हुए कहा है कि क्या आप पुराना इतिहात बदल देंगे? संवाददाताओं से बातचीत के दौरान उन्होंने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि क्या जो इतिहास है आप उसे भुला देंगे? उन्होंने कहा कि आखिरकार नया संसद भवन बनाने की ज़रूरत ही क्या थी।
वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा है कि यह लोकतंत्र का पवित्र मंदिर है सभी को इसके उद्घाटन समारोह में शामिल होना चाहिए लेकिन कुछ लोग ऐसे लोग हैं जिन्हें जान बूझकर विघ्न लाना है। उन्होंने कहा कि देश की जनता समझदार है जिन्हें समस्या हो रही है उनका इलाज जनता ही करेगी।
वहीं, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है कि नई संसद से अधिक जरूरी है कि लोकतांत्रिक परंपराओं को बढ़ाया और निभाया जाए। उन्होंने कहा कि जो लोग विपक्ष का सम्मान नहीं करते, जो नफरत से राजनीति करते हों और जो जनता से झूठ बोलें और उसको छुपाने के लिए एक-एक कार्यक्रम करें। उनके कार्यक्रमों में जाने से क्या फायदा होगा।

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तमिलनाडु के मठ का बयान
दूसरी ओर, तमिलनाडु में एक मठ के प्रमुख ने कहा है कि सेंगोल लॉर्ड माउंटबेटन को सौंपा गया था और फिर इसे 1947 में पंडित जवाहरलाल नेहरू को अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में भेंट किया गया था तथा कुछ लोगों द्वारा इस संबंध में किए जा रहे गलत दावों से उन्हें बहुत तकलीफ हो रही है। चेन्नई में संवाददाताओं से बातचीत में तिरुवदुथुरै आदिनाम के अंबालावन देसिका परमाचार्य स्वामी ने कहा कि सेंगोल जो लंबे समय तक लोगों की निगाहों से दूर था, अब संसद में प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाएगा, ताकि दुनिया उसे देख सके। हम आपको बता दें कि यह सेंगोल पर उपजे राजनीतिक विवाद के बीच मठ प्रमुख की इस मामले में पहली प्रतिक्रिया थी। सेंगोल को सौंपे जाने के प्रमाण से जुड़े एक सवाल पर आदिनाम ने कहा कि 1947 में अखबारों और पत्रिकाओं में छपी तस्वीरें व खबरों सहित इसके कई प्रमाण हैं। परमाचार्य स्वामी ने कहा, “यह दावा करना कि सेंगोल भेंट नहीं किया गया था, गलत है। सेंगोल के संबंध में ‘गलत सूचना’ के प्रसार से तकलीफ हुई है।” परमाचार्य स्वामी ने मठ का एक प्रकाशन भी प्रदर्शित किया, जिसमें 1947 में सेंगोल के हस्तांतरण से जुड़ी तस्वीरें प्रकाशित की गई थीं। परमाचार्य स्वामी ने कहा, “यह तमिलनाडु के लिए गर्व का विषय है कि सेंगोल चोल देश (चोल वंश द्वारा शासित क्षेत्र) में स्थित तिरुववदुथुराई आदिनाम से ले जाया गया है।” मठ प्रमुख ने रेखांकित किया कि राजदंड एक न्यायपूर्ण और निष्पक्ष शासन की आवश्यकता को दर्शाता है और तमिल साहित्य में तिरुक्कुरल सहित कई पुस्तकों में सेंगोल का जिक्र है। 
सेंगोल के धार्मिक महत्व पर परमाचार्य स्वामी ने कहा, “सेंगोल चोल साम्राज्य के शासनकाल में अपनाई जाने वाली परंपराओं को ध्यान में रखते हुए बनाया गया था और इस पर ऋषभ (नंदी) का प्रतीक स्थापित किया गया था।” उन्होंने कहा, “सेंगोल धर्म का प्रतीक है, नंदी धर्म का प्रतीक है; यह आने वाले हर काल के लिए धर्म की रक्षा का प्रतीक है।” मठ प्रमुख ने धर्म के प्रतीक नंदी के महत्व को रेखांकित करने के लिए एक तमिल शैव भजन का भी हवाला दिया। उन्होंने कहा, “हमें खुशी है कि सेंगोल, जो एक संग्राहलय तक सीमित था, अब नये संसद भवन में रखा जाएगा। हमें दिल्ली आमंत्रित किया गया है। हम वहां जाएंगे और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सेंगोल भेंट करेंगे।” हम आपको बता दें कि 1947 में मठ का संचालन अंबालावन देसिका परमाचार्य स्वामी के हाथों में था और यह निर्णय लिया गया था आजादी और सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में एक सेंगोल का निर्माण किया जाए। मठ का एक प्रतिनिधिमंडल दिल्ली पहुंचा था, जिसमें सदाई स्वामी उर्फ कुमारस्वामी थम्बीरन, मनिका ओडुवर और नादस्वरम वादक टी एन राजारथिनम पिल्लई शामिल थे।
थम्बीरन स्वामी ने लॉर्ड माउंटबैटन को सेंगोल सौंपा था, जिन्होंने इसे वापस उन्हें (थम्बीरन स्वामी को) भेंट कर दिया था। इसके बाद, पारंपरिक संगीत की धुनों के बीच एक शोभायात्रा निकालकर सेंगोल पंडित जवाहरलाल नेहरू के आवास पर ले जाया गया था। यहां थम्बीरन स्वामी ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में सेंगोल नेहरू को भेंट किया था।



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