चीन समर्थक सरकार होने के बावजूद नेपाल में भारत ने बाजी पलट दी, ड्रैगन सोचता रह गया और इधर हिन्दुस्तानी ट्रेन दौड़ाने का पूरा प्लान तैयार

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पिछले एक महीने में चीन ने भारत के हर पड़ोसी देश में घुसने की कोशिश की है। चीन ने एक के बाद एक नेपाल, अफगानिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और भूटान को फंसाने की कोशिश की है। भारत के ये पड़ोसी देश चीन के झांसे में आ भी गए। पड़ोसी देशों को मदद करने के बावजूद जब भारत ने इस बात पर गौर किया कि ये फिर  भी चीन के झांसे में फंस रहे हैं तो भारत ने भी इनका इलाज शुरू कर दिया। भारत और चीन के बीच ‘जंग’ का अखाड़ा बन चुके नेपाल में मोदी सरकार ने ड्रैगन की नापाक साजिश का करारा जवाब दिया है। भारत ने रक्सौल-काठमांडू रेल लाइन के लिए अंतिम स्थान सर्वेक्षण में तेजी लाई है। इसके बाद ट्रेन को काठमांडू तक चलाने का रास्ता साफ हो जाएगा। वहीं, भारत की हरकत से चीन भी हरकत में आ गया है और उसने अपनी चाल तेज कर दी है। चीन ने अब केरुंग-काठमांडू रेलवे लाइन की व्यवहार्यता की जांच के लिए एक अध्ययन शुरू किया है। ड्रैगन की चाल में यह तेजी केपी ओली समर्थित प्रचंड सरकार के सत्ता में आने के बाद आई है।

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श्रीलंका की तरह नेपाल को भी कर्ज जाल में फंसाने की चीनी चाल

इस बीच जानकारों का कहना है कि अरबों डॉलर की इस रेलवे लाइन के जरिए चीन श्रीलंका की तरह नेपाल को भी कर्ज के जाल में फंसाना चाहता है। यह रेलवे लाइन हिमालय के बीच से होकर बननी है, जो काफी महंगी और तकनीकी रूप से काफी चुनौतीपूर्ण होगी। इतना ही नहीं, रेलवे लाइन बनने के बाद इसे चालू रखने में करोड़ों रुपए खर्च होंगे। चीन इस रेल लाइन को बेल्‍ट एंड रोड प्रोजेक्‍ट के तहत बनाना चाहता है, जिसकी पूरी कीमत वह नेपाल से वसूल करना चाहता है। इस बीच नेपाल सरकार चाहती है कि चीन उसे कर्ज के बदले आर्थिक मदद दे। चीन इसके लिए तैयार नहीं दिख रहा है।

ट्रेन चलाने के मामले में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है

काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, नेपाल में ट्रेन चलाना अब भारत और चीन के बीच विवाद का विषय बन गया है। दोनों देश नेपाल में अपना प्रभाव खत्म नहीं होने देना चाहते। पिछले दिसंबर में चीन से 6 सदस्यीय टीम रेलवे के सर्वे के लिए पहुंची थी। कोरोना के बाद पहली बार चीन की सर्वे टीम नेपाल आई थी। नेपाल के रेल मंत्रालय के प्रवक्ता अमन ने कहा, ‘चीनी दल ने प्रस्तावित रेल नेटवर्क के विभिन्न स्थलों का दौरा किया और मंगलवार को सर्वेक्षण करने के बाद वापस चीन लौट आया।’ अमन ने कहा कि अब हम कह सकते हैं कि ट्रेन चलाने की फिजिबिलिटी स्टडी अब आगे बढ़ चुकी है। इस तरह ट्रेन चलाने के मामले में भारत चीन को काफी पीछे छोड़ चुका है। एक अन्य रेलवे अधिकारी रोहित कुमार बिसुरल ने कहा कि भारतीय पक्ष ने बिहार में रक्सौल से काठमांडू तक ट्रेन चलाने के लिए अंतिम स्थान सर्वेक्षण के लिए अपना फील्डवर्क पूरा कर लिया है. भारत की ओर से यह पूरी परियोजना कोंकण रेलवे द्वारा क्रियान्वित की जा रही है। यह कंपनी अप्रैल से मई के बीच अपनी रिपोर्ट देगी। इससे पहले मार्च 2016 में जब चीन के इशारे पर नाचने वाले केपी ओली ने बीजिंग का दौरा किया था तो दोनों देशों ने रेलवे के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। 

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चीन और नेपाल के बीच रेलवे पर 3 बिलियन डॉलर खर्च किए गए

इसके बाद भारत के कान खड़े हुए और उसने रक्सौल से काठमांडू के बीच ट्रेन चलाने की योजना का प्रस्ताव रखा. इसके बाद साल 2018 में तत्कालीन पीएम केपी ओली की भारत यात्रा के दौरान इस रेलवे लाइन पर हस्ताक्षर किया गया था। भारत इस इलेक्ट्रिक रेलवे लाइन के लिए वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है। वहीं, चीन और नेपाल के बीच रेलवे लाइन बनाने पर करीब 3 अरब डॉलर खर्च किए जाएंगे। नेपाली विशेषज्ञों का कहना है कि चीन को इस रेल परियोजना का अध्ययन करने में 42 महीने का समय लगेगा। भारत ने देर से शुरुआत की लेकिन जल्द ही अपना अंतिम स्थान सर्वेक्षण पूरा कर लेगा। यह रेल लाइन 141 किमी लंबी होगी। 



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