Jan Gan Man: अंग्रेज काल के कानूनों की जगह लेने वाले तीन नये विधेयकों के मसौदे पर उठे गंभीर सवाल

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मोदी सरकार औपनिवेशिक युग की हर निशानी को मिटा देना चाहती है और भारत को गुलामी के हर प्रतीक से आजादी दिलाना चाहती है। देखा जाये तो सरकार का यह मिशन तो अच्छा है लेकिन इस मिशन को सफल बनाने का जिम्मा जिन सरकारी अधिकारियों पर है क्या वह अपना काम पूरी ईमानदारी से कर रहे हैं? यह सवाल हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि ऐसी आशंकाएं उठी हैं कि कहीं मोदी सरकार की एक बड़ी कवायद निष्फल ना हो जाये।
आपको याद ही होगा कि संसद के हाल में समाप्त हुए मॉनसून सत्र के दौरान मोदी सरकार की ओर से गुलामी काल के कानूनों- भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदलने के लिए लोकसभा में तीन विधेयक पेश किये गये थे। गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में ब्रिटिशकालीन आईपीसी, सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने के लिए तीन नये विधेयक पेश किये और ऐलान किया कि अब राजद्रोह के कानून को पूरी तरह समाप्त किया जा रहा है। अमित शाह ने सदन में भारतीय न्याय संहिता विधेयक, 2023; भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 पेश किये। ये विधेयक भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860, दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), 1898 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की जगह लेंगे। हम आपको याद दिला दें कि अमित शाह ने विधेयक पेश करते समय कहा था कि त्वरित न्याय प्रदान करने और लोगों की समकालीन आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को ध्यान में रखने वाली एक कानूनी प्रणाली बनाने के लिए ये परिवर्तन किए गए। फिलहाल इन तीनों विधेयकों पर संसद की स्थायी समिति विचार कर रही है।

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विधि विशेषज्ञों की राय
जहां तक सरकार की इस पहल पर आई प्रतिक्रियाओं की बात है तो आपको बता दें कि विधि विशेषज्ञों ने इसका स्वागत किया था। लेकिन अब जब विधेयकों का मसौदा सामने आया है तो इस पर सवाल भी उठने लगे हैं। भारत के पीआईएल मैन के रूप में विख्यात सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि सबसे बड़ा सवाल यह है कि इसका लाभ जनता को क्या मिलेगा? उन्होंने कहा कि सवाल यह है कि क्या इन तीन कानूनों के बाद लोगों को त्वरित न्याय मिलना सुनिश्चित हो जायेगा? उन्होंने कहा कि जिन बाबुओं ने यह तीनों कानून ड्राफ्ट किये हैं उन्होंने पुराने कानूनों के चैप्टर और सेक्शन बस आगे पीछे कर दिये हैं। उन्होंने कहा कि इसके अलावा थोड़ा बहुत भाषा में बदलाव कर दिया गया है। उन्होंने कहा इन तीनों कानूनों का मसौदा तैयार करने वाले सरकारी बाबुओं ने किसी अन्य देश के कानूनों का अध्ययन ही नहीं किया।
मोदी सरकार का पक्ष
हम आपको यह भी बता दें कि केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला और गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी इस सप्ताह तीन विधेयकों पर संसद की एक समिति के सामने एक प्रस्तुति दे सकते हैं जो भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे। गृहमंत्री के सुझाव के अनुसार, विधेयकों को गृह मामलों की संसद की स्थायी समिति को भेज दिया गया है, जिसकी अध्यक्षता उत्तर प्रदेश से भाजपा के राज्यसभा सदस्य बृजलाल कर रहे हैं। अधिकारियों ने कहा है कि गृह मंत्रालय की टीम तीनों विधेयक लाने के पीछे के कारण, उनकी जरूरतें और यह बताएगी कि वे समाज की बदलती जरूरतों के लिए कैसे प्रासंगिक हैं। सरकार का यह भी कहना है कि प्रस्तावित कानूनों में कुछ मौजूदा सामाजिक वास्तविकताओं एवं अपराधों को परिभाषित करने और ऐसे अपराधियों और ऐसे मुद्दों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए एक तंत्र प्रदान करने का प्रयास किया गया है।अधिकारियों ने यह भी कहा है कि गृहमंत्री ने स्वयं तीन विधेयकों का मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया के दौरान विभिन्न हितधारकों के साथ 150 से अधिक बैठकों में भाग लिया था।
बहरहाल, संसदीय समिति के पास विधेयकों की पड़ताल करने और शीतकालीन सत्र में संसद को रिपोर्ट सौंपने के लिए तीन महीने का समय है। समिति के सदस्यों में बिप्लब कुमार देब, दिग्विजय सिंह, नीरज शेखर, काकोली घोष दोस्तीदार, दयानिधि मारन, वीडी राम और रवनीत सिंह शामिल हैं।



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