जोशीमठ भूधंसाव के लिए ढीली मिटटी वाले ढलान, बहुमंजिला इमारतों का निर्माण, जनसंख्या जिम्मेदार

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जोशीमठ भूधंसाव का वैज्ञानिक और तकनीकी अध्ययन करने वाले संस्थानों ने इस समस्या के लिए पर्वतीय नगर का ढ़ीली मिटटी वाले ढलान पर स्थित होना, जनसंख्या दवाब, बहुमंजिला इमारतों का निर्माण और उंचाई वाले इलाकों से आने वाले पानी के लिए उचित निकासी प्रणाली के अभाव को जिम्मेदार ठहराया है। सभी संस्थानों की रिपोर्ट अलग-अलग हैं और उनमें समस्या को अलग-अलग कोणों से देखा गया है लेकिन मोटे तौर पर वे सभी उन कारकों के संयोजन पर एक राय हैं जिनके कारण इस साल की शुरूआत में जोशीमठ में स्थिति गंभीर हो गयी।
जोशीमठ भूधंसाव के लिए नगर के ढीली चटटानों पर स्थित होने, जनसंख्या के बढ़ते दबाव और शहर में होटलों सहित बहुमंजिला इमारतों जैसे कुछ कारकों को आठ अलग-अलग संस्थानों द्वारा प्रस्तुत लगभग सभी रिपोर्टों में उजागर किया गया है।

केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान, भारतीय भू वैज्ञानिक सर्वेंक्षण, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान,केंद्रीय भूजल बोर्ड, भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान, राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान और भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान रूड़की जैसे आठ केंद्रीय तकनीकी और वैज्ञानिक संस्थानों को जोशीमठ भूधंसाव की समस्या और उसके कारणों का अध्ययन करने को कहा गया था।
इन संस्थानों ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्टे जनवरी के अंत तक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को सौंप दी थी लेकिन उन्हें सार्वजनिक नहीं किया गया। हाल में उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा रिपोर्टों को गुप्त रखे जाने के औचित्य पर सवाल उठाए जाने के बाद इन्हें सार्वजनिक किया गया।
उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद इन रिपोर्ट को रविवार को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड कर दिया।

साल की शुरूआत में जोशीमठ में मकानों और जमीन में दरारें उभरना शुरू हो गयी थीं जिससे परेशान प्रशासन को सर्वाधिक समस्या ग्रस्त सुनील, सिंहधार और मारवाड़ी वार्डों सहित विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को वहां से हटाकर अस्थाई राहत शिविरों में स्थानांतरित करना पड़ा।
केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान ने अपनी सिफारिश में कहा है कि पहाड़ी क्षेत्रों में नगरों के विकास के लिए नगर योजना के सिद्वांतों की समीक्षा की जरूरत है जहां भू तकनीकी और भू जलवायु दशाओं के आधार पर हितधारकों में निर्माण की अच्छी गुणवत्ता, सामग्री, नियामक प्रक्रिया और जागरूकता होनी चाहिए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ये सिफारिशें जोशीमठ में नौ प्रशासनिक जोनों के 2.8 वर्गमीटर पहाड़ी क्षेत्र में स्थित 2364 भवनों के व्यापक भौतिक क्षति के आंकलन सर्वेंक्षण पर आधारित हैं।

केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान की रिपोर्ट में बताया गया है कि जोशीमठ नगर चटटानों के वैक्रिटा समूह पर स्थित है जिन पर अनियमित बोल्डरों तथा विभिन्न मोटाई वाली मिटटी से बना मोरेनिक जमाव है। यह मिटटी एकजुट नहीं होती जिससे धीरे-धीरे भूधंसाव और भूस्खलन की आशंका होती है। जोशीमठ की जेपी कॉलोनी से कई दिनों तक हुए पानी के रिसाव की समस्या का अध्ययन करने वाले राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह जल सतह के नीचे के चैनलों में रूकावट आने के कारण बाहर निकला।

संस्थान ने अपनी एक सिफारिश में कहा है कि उपरी इलाकों से आने वाले पानी और शहर के कूड़े का सुरक्षित निपटान शीर्ष प्राथमिकता होनी चाहिए।
केंद्रीय भूजल बोर्ड ने सुझाव दिया है कि ‘रिटेंशन’ दीवार के साथ ही विभिन्न स्तरों पर खाइयां भी बनायी जानी चाहिए जिससे भूजल का दवाब न बने और भविष्य में दरारें न दिखाई दें।
भारतीय भूगर्भ सर्वेंक्षण ने अपनी रिपोर्ट में जोशीमठ के विभिन्न भागों में स्थलीय निगरानी करने की जोरदार वकालत की है।



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