जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यक हिंदुओं की सुरक्षा के लिए मोदी सरकार का मेगा प्लान

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जम्मू-कश्मीर में नये साल की शुरुआत ही आतंकवादी हमले से होने के चलते केंद्र शासित प्रदेश की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत होने के सरकारी दावों पर सवाल उठ खड़े हुए हैं। खासतौर पर सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले हिंदू अल्पसंख्यकों के मन में भय व्याप्त हुआ है जिसको देखते हुए केंद्र की मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा को और बढ़ाने का अहम निर्णय लिया है। हम आपको बता दें कि जम्मू में सीमावर्ती जिलों राजौरी और पुंछ में अल्पसंख्यक क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के वास्ते केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के दो हजार से अधिक जवानों को तैनात किया जा रहा है। इस संबंध में एक अधिकारी ने कहा, ‘‘राजौरी और पुंछ जिलों में सुरक्षा मजबूत करने के लिए बड़ी संख्या में सीआरपीएफ की 20 से अधिक कंपनियों को तैनात किया जा रहा है जिनमें दो हजार से अधिक जवान शामिल हैं।’’ उन्होंने कहा कि सीआरपीएफ के महानिरीक्षक और अन्य शीर्ष अधिकारी जवानों की तैनाती की निगरानी कर रहे हैं।
इस बीच, राजौरी के उपायुक्त विकास कुंडल ने बुधवार को दोहरे आतंकवादी हमलों में घायल हुए आठ लोगों को एक-एक लाख रुपये की अनुग्रह राशि प्रदान की। उन्होंने सरकारी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) अस्पताल का दौरा किया और वहां इलाज करा रहे घायलों का हालचाल पूछा। हम आपको बता दें कि उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने पहले हमलों में मारे गए लोगों के परिवारों को 10-10 लाख रुपये और घायलों को एक-एक लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की थी। कुंडल ने घायलों से बातचीत की और शोक संतप्त परिवारों के साथ एकजुटता भी व्यक्त की। उन्होंने उन्हें प्रशासन की ओर से हर संभव सहयोग और सहायता का आश्वासन दिया। उन्होंने अस्पताल के कर्मियों को घायलों को हर संभव इलाज मुहैया कराने का निर्देश दिया।

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इस बीच, राजौरी के जिस डांगरी गांव में हिंदुओं को निशाना बनाया गया था वहां के लोगों ने अब अपनी सुरक्षा खुद करने की तैयारी भी कर ली है। स्थानीय लोगों की प्रशासन से मांग है कि युवाओं को हथियारों का प्रशिक्षण दिया जाये ताकि जरूरत पड़ने पर वह आतंकवादियों का मुकाबला कर सकें।
उधर, राजौरी में हुई इस घटना के विरोध में कश्मीर घाटी में भी जनाक्रोश देखने को मिला। राजौरी में हत्याओं के खिलाफ स्थानीय लोगों ने राजनीतिक कार्यकर्ताओं के साथ श्रीनगर में विरोध प्रदर्शन किया। लोगों ने कहा कि यदि सरकार और स्थानीय प्रशासन अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पा रहा है तो यह हैरत की बात है। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि भाजपा वाले बात तो पीओके को वापस लाने की करते हैं लेकिन यहां के कश्मीर के हालात को नहीं संभाल पा रहे हैं।



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