सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के जोशीमठ भूमि धंसाव से संबंधित मामले की सुनवाई से इनकार करते हुए कहा कि देश में महत्वपूर्ण हर चीज को अदालत के सामने लाने की जरूरत नहीं है क्योंकि यहां लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकारें हैं। याचिकाकर्ता ने जोशीमठ में संकट को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने के लिए शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप की मांग की थी। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि देश में महत्वपूर्ण सब कुछ हमारे सामने आने की जरूरत नहीं है। लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकारें हैं जो देखभाल कर सकती हैं। हम इसे 16 जनवरी को उठाएंगे।
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स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की ओर से पेश अधिवक्ता परमेश्वर नाथ मिश्रा ने इस मामले की तत्काल सुनवाई का उल्लेख किया था। लेकिन पीठ ने कहा कि लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित अन्य सरकारें हैं जो चीजों का ध्यान रख सकती हैं। सरस्वती ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि जोशीमठ की स्थिति बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण के कारण हुई और उत्तराखंड के लोगों को तत्काल वित्तीय सहायता और मुआवजे की मांग की। याचिका में इस चुनौतीपूर्ण समय में जोशीमठ के निवासियों को सक्रिय रूप से समर्थन देने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) से निर्देश मांगा गया है।