Jan Gan Man: भारत के पड़ोसी देश अचानक से China की धुन पर क्यों नाचने लगते हैं? Maldives के भारत विरोधी रुख का असली कारण क्या है?

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भारत और मालदीव के राजनयिक रिश्ते इस समय तनावपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं लेकिन देखा जाये तो मौजूदा स्थिति कोई अचानक से पैदा नहीं हुई है, बल्कि यह वहां विदेशी ताकतों की ओर से लंबे समय से भड़काई जा रही भारत विरोधी भावना का परिणाम है। कोविड महामारी के बाद के मालदीव के राजनीतिक परिदृश्य पर गौर करें तो देखने को मिलता है कि विपक्ष के भारत-विरोधी अभियान तेजी से आक्रामक हुए। वर्तमान राष्ट्रपति जब विपक्ष में थे तब उनके नेतृत्व में विपक्ष ने न केवल भारतीय सेना को हटाने की मांग की थी बल्कि भारत से सांस्कृतिक और सामाजिक दूरी बनाने पर भी जोर दिया था। देखा जाये तो मालदीव में पिछली एमडीपी सरकार भारत समर्थक थी, लेकिन कोविड काल के दौरान जो विपक्षी राजनीति तेज हुई, वह ‘भारत के खिलाफ’ घूमती रही। वर्तमान राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू किस कदर भारत विरोधी हैं इसका उदाहरण तब भी देखने को मिला था जब वह राजधानी माले के मेयर थे। माले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन के लिए पार्कों और सामुदायिक केंद्रों तक भारतीयों की पहुंच बहुत आसान थी, लेकिन मालदीव के वर्तमान राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के माले के मेयर बनने के बाद, यह आसान पहुंच काफी हद तक कम हो गई थी।
यह सही है कि वहां चीन-मालदीव मैत्री संघ और पाकिस्तान-मालदीव मैत्री संघ का उदय हो रहा है और भारत की ‘सॉफ्ट पावर’ का मुकाबला करने के लिए एक तंत्र को खड़ा किया जा रहा है लेकिन हकीकत यह है कि मालदीव के साथ सांस्कृतिक संबंधों के मामले में चीन बहुत पीछे है। हम आपको बता दें कि ‘सॉफ्ट पॉवर’ शब्द का प्रयोग अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में किया जाता है, जिसके तहत कोई देश परोक्ष रूप से सांस्कृतिक अथवा वैचारिक साधनों के माध्यम से किसी अन्य देश के व्यवहार अथवा हितों को प्रभावित करता है। जहां तक मालदीव में भारत विरोधी अभियानों की बात है तो आपको याद दिला दें कि पिछले साल जून में राजधानी माले में राष्ट्रीय फुटबॉल स्टेडियम में भारतीय उच्चायोग द्वारा मालदीव के युवा, खेल और सामुदायिक सशक्तीकरण मंत्रालय के सहयोग से आयोजित अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस से संबंधित एक कार्यक्रम को भीड़ ने बाधित किया था। उस समय प्रदर्शनकारियों ने मामूली-सी बात पर हंगामा किया था। उनका मानना था कि योग ‘इस्लाम विरोधी’ है। लेकिन विडंबना यह है कि घटना में शामिल लोग विभिन्न स्वास्थ्य केंद्रों में खुद ही योग करते हैं और खुद को फिट रखने का प्रयास करते हैं। यानि वह प्रदर्शन भारत के खिलाफ सुनियोजित अभियान का एक हिस्सा था।

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वैसे देखा जाये तो मालदीव के लोग भारत के प्रति मित्रवत हैं और भारतीय संगीत, बॉलीवुड और संस्कृति के बहुत प्रशंसक हैं। लेकिन वहां बहुत गरीबी भी है इसलिए अक्सर भीड़ को कपड़े, भोजन और धन देकर ऐसे विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने के लिए राजी किया जाता है। ऐसी कई रिपोर्टें मालदीव से सामने आई हैं जहां कपड़े, भोजन और पैसे की खातिर कुछ लोग पूरे परिवार के साथ भारत विरोधी प्रदर्शनों में शामिल होने के लिए तैयार हो जाते थे। जाहिर है यह पैसा चीन से ही वहां के नेताओं को मिलता था ताकि जनता के बीच भारत विरोधी भावना का प्रसार हो लेकिन इस सबकी परवाह नहीं करते हुए भारत अपने पड़ोसी देश के भले के लिए लगातार काम करता रहा। भारत जानता है कि मालदीव कई मायनों में उस पर निर्भर है इसलिए वह उसकी मदद करता रहेगा।
साथ ही सिर्फ मालदीव ही नहीं, भारत के कई अन्य पड़ोसी देशों को देखेंगे तो वहां भी ऐसा ही रुझान देखने को मिलेगा। नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश में अक्सर देखने को मिलता है कि वहां कभी भारत समर्थक सरकार बन जाती है तो कभी भारत विरोधी सरकार सत्ता में आ जाती है। दरअसल भारत के पड़ोसी देशों में कई राजनीतिक दलों को चीन की ओर से फंडिंग मिलती है। इस फंडिंग के जरिये वहां भारत विरोधी प्रदर्शन कराये जाते हैं और दुष्प्रचार को हवा दी जाती है। जब वह दल सत्ता में आ जाते हैं तो चीन के इशारों पर भारत के खिलाफ बयानबाजी करने लग जाते हैं या पुराने समझौतों को रद्द करने लग जाते हैं। लेकिन सियासत से हट कर देखेंगे तो यही सामने आता है कि किसी भी पड़ोसी देश की जनता भारत के खिलाफ नहीं है। बल्कि पड़ोसी देशों की जनता यह जानती है कि जब भी जरूरत पड़ी सबसे पहले निस्वार्थ भाव से मदद के लिए भारत ही उनकी मदद के लिए खड़ा हुआ है।



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