Jan Gan Man: क्या हिंदुओं से बदला लेने के लिए लाये गये थे Places of Worship Act, Minority Commissioin Act और Waqf Act

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2014 में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद से देश में विकास और विरासत को साथ आगे बढ़ाने का जो अभियान चला उसके चलते देश में सांस्कृतिक पुनरुत्थान भी देखने को मिला। इससे लोगों में सेकुलर दिखने की चाह खत्म हुई और खुद के सनातनी होने के प्रति गर्व बढ़ा। समाज में यह बदलाव देख कांग्रेस में एक बड़ा फर्क यह आया कि चुनाव निकट आते ही कांग्रेस के नेता भी मंदिरों में जाने लगे और खुद को बहुत बड़ा तपस्वी और जनेउधारी बताने लगे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कांग्रेस ने हिंदुओं के साथ अन्याय करने के लिए तीन संसदीय महापाप किये थे? देखा जाये तो आज हिंदुओं को जो संघर्ष करना पड़ रहा है उसका असल कारण कांग्रेस की ओर से 1991 में बनाया गया प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट, 1992 में बनाया गया माइनॉरिटी कमिशन एक्ट और 1995 में बनाया गया वक्फ एक्ट हैं।
Waqf Act 1995
हम आपको बता दें कि जहां तक वक्फ बोर्ड की बात है तो यह जमीन कब्जाने वाला एक संगठन बन कर रह गया है। वोट बैंक की सियासत के चलते कांग्रेस सरकारों ने वक्फ बोर्ड के काले कारनामों की हमेशा अनदेखी की। कांग्रेस सरकारों ने तुष्टिकरण की राजनीति के चलते वक्फ बोर्ड के फलने-फूलने के लिए कई रास्ते खोले। कांग्रेस ने वक्फ बोर्ड को असीम शक्तियां दीं जिसके चलते वक्फ बोर्ड की संपत्ति दिन दुनी रात चौगुनी बढ़ने लगी। वक्फ बोर्ड के महत्वपूर्ण पदों पर बड़े नेता और दबंग आसीन होने लगे और महत्वपूर्ण जमीनों पर कब्जा कर बंदरबांट का खेल शुरू हो गया।

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देखा जाये तो वक्फ बोर्ड में कुंडली मारे बैठे लोगों का धर्म-कर्म से कोई नाता नहीं रह गया है, इनका सारा ध्यान ऐसी जमीनों को हथियाने पर लगा रहता है जिसको लेकर कहीं कोई विवाद चल रहा हो या फिर या फिर ऐसी कोई जमीन हो जिसका कोई वैध वारिस नहीं हो। इसके अलावा वक्फ बोर्ड जहां भी कब्रिस्तान की घेरेबंदी करवाता है, उसके आसपास की जमीन को भी अपनी संपत्ति करार दे देता है। जिसके चलते अवैध मजारों और नई-नई मस्जिदों की भी बाढ़-सी आ रही है। 1995 का वक्फ एक्ट कहता है कि अगर वक्फ बोर्ड को लगता है कि कोई जमीन वक्फ की संपत्ति है तो यह साबित करने की जिम्मेदारी उसकी नहीं, बल्कि जमीन के असली मालिक की होती है कि वो बताए कि कैसे उसकी जमीन वक्फ की नहीं है। 1995 का कानून यह जरूर कहता है कि किसी निजी संपत्ति पर वक्फ बोर्ड अपना दावा नहीं कर सकता, लेकिन यह तय कैसे होगा कि संपत्ति निजी है? इसको लेकर कानून में बिल्कुल भी स्पष्टता नहीं है। अगर वक्फ बोर्ड को सिर्फ लगता है कि कोई संपत्ति वक्फ की है तो उसे कोई दस्तावेज या सबूत पेश नहीं करना है, सारे कागज और सबूत उसे देने हैं जो अब तक दावेदार रहा है। 
वक्फ बोर्ड पर सरकारें कैसे मेहरबान रहती थीं इसका सबसे बड़ा उदाहरण वर्ष 1995 में पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार के समय देखने को मिला जब केन्द्र सरकार ने वक्फ एक्ट 1954 में संशोधन किया और नए-नए प्रावधान जोड़कर वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां दे दीं। इसके बाद वर्ष 2013 में मनमोहन सरकार ने वक्फ बोर्ड कानून में संशोधन कर इसे और शक्तियां प्रदान कर दीं। हम आपको बता दें कि बड़ी बात है कि अगर आपकी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति बता दिया गया है तो आप उसके खिलाफ कोर्ट नहीं जा सकते। आपको वक्फ बोर्ड से ही गुहार लगानी होगी। वक्फ बोर्ड का फैसला आपके खिलाफ आया, तब भी आप कोर्ट नहीं जा सकते। तब आप वक्फ ट्राइब्यूनल में जा सकते हैं। इस ट्राइब्यूनल में प्रशासनिक अधिकारी होते हैं। उसमें गैर-मुस्लिम भी हो सकते हैं। हालांकि, राज्य की सरकार किस दल की है, इस पर निर्भर करता है कि ट्राइब्यूनल में कौन लोग होंगे। संभव है कि ट्राइब्यूनल में भी सभी के सभी मुस्लिम ही हो जाएं। वैसे भी अक्सर सरकारों की कोशिश यही होती है कि ट्राइब्यूनल का गठन ज्यादा से ज्यादा मुस्लिमों के साथ ही हो। वक्फ एक्ट का सेक्शन 85 कहता है कि ट्राइब्यूनल के फैसले को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकती है।
Places of Worship Act
दूसरी ओर प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट की बात करें तो आपको बता दें कि उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के उपासना स्थल को, किसी दूसरे धर्म के उपासना स्थल में नहीं बदला जा सकता और यदि कोई इसका उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो उसे जुर्माना और तीन साल तक की जेल भी हो सकती है। यह कानून तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के नेतृत्व वाली सरकार 1991 में संसद में लेकर आई थी। यह कानून तब आया था जब बाबरी मस्जिद और अयोध्या का मुद्दा बेहद गर्म था। उस समय संसद में भाजपा ने इसका पुरजोर विरोध किया था। भाजपा के तत्कालीन नेता लालकृष्ण आडवाणी और भाजपा सांसद रासा सिंह रावत ने उस समय अपने संबोधनों के जरिये इस विधेयक पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी लेकिन कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने तुष्टिकरण की नीति को बढ़ावा देते हुए इस अधिनियम को पारित कर दिया था।
Minority Commissioin Act
जहां तक राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम की बात है तो 1992 में तत्कालीन सरकार ने इसके तहत राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की थी। इसके तहत पाँच धार्मिक समुदाय, अर्थात, मुस्लिम, ईसाई, सिख बौद्ध और पारसी को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित किया गया था। इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत के पीआईएल मैन के रूप में विख्यात अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि यह तीनों कांग्रेस की ओर से किये गये ऐसे संसदीय महापाप हैं जोकि हिंदुओं से बदला लेने के लिए किये गये थे।



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