Kashmir के आखिरी संतूर सरताज Ghulam Mohammad Zaz को Padma Shri Award मिलने की खुशी मगर…

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74वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर 106 हस्तियों को पद्म पुरस्कार देने की घोषणा की गई। इन हस्तियों में कई ऐसे गुमनाम चेहरे भी शामिल हैं जो बिना किसी शोर-शराबे के अपने काम में लगे हुए हैं। इन्हीं में एक हैं जम्मू-कश्मीर के गुलाम मोहम्मद जाज। कश्मीर के आखिरी संतूर निर्माता गुलाम मोहम्मद जाज ने अपनी कला को पहचान मिलने पर प्रसन्नता तो जताई है लेकिन साथ ही कहा है कि उन्हें ऐसा लगता है कि यह सम्मान उन्हें देर से मिला। उनका कहना है कि मैं पद्मश्री पाकर बहुत खुश हूं लेकिन मुझे और अधिक खुशी होती यदि यह पुरस्कार उस समय मिलता जब मेरे दादा, मेरे पिता या मेरे चाचा जीवित होते और वे इन यंत्रों को बना रहे होते।

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प्रभासाक्षी से खास मुलाकात में गुलाम मोहम्मद जाज ने कहा कि वह संतूर सहित विभिन्न संगीत वाद्ययंत्र बनाते रहेंगे जब तक उनका जीवन रहेगा। उन्होंने कहा, “इस पुरस्कार ने मेरे विश्वास को बहाल किया है कि ऐसे लोग हैं जो ऐसे काम की सराहना करते हैं।” उन्होंने कहा कि यह एक मर रही कला है। आखिरकार, किसी ने इसके लिए आवाज उठाई है। गुलाम मोहम्मद जाज ने कहा कि वह अपने परिवार की आठवीं पीढ़ी हैं जो तार वाले वाद्ययंत्र बना रहे हैं। यह पूछे जाने पर कि कैसे उनका परिवार इस कला के क्षेत्र में आया, उन्होंने कहा, “मुझे नहीं पता कि यह हमारे परिवार में कैसे आया। कुछ लोग कहते हैं कि मुगल बादशाह औरंगज़ेब के शासनकाल के दौरान आया जबकि अन्य कहते हैं कि यह उन शिल्पों में से एक था जो मीर सैयद अली हमदानी (14वीं शताब्दी के इस्लामिक उपदेशक, कवि और यात्री) के साथ कश्मीर आया।’’ उन्होंने नयी पीढ़ियों द्वारा इस कला में रुचि नहीं दिखाने पर निराशा जताई लेकिन यह भी उम्मीद व्यक्त की कि कोई इसे आगे बढ़ाएगा और इसे मरने नहीं देगा।



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