बेहद खास है कोहिनूर का सफर! टॉवर ऑफ लंदन में ब्रिटिश साम्राज्य के ‘विजय प्रतीक’ के तौर पर किया जाएगा प्रदर्शित

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ब्रिटेन की महारानी के ताज में लगे विवादस्पद औपनिवेशिक काल के कोहिनूर हीरे को लेकर एक बार फिर से चर्चा तेज हो गई है। पिछले वर्ष महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के निधन के बाद कोहिनूर हीरे से सुस्जित मुकुट को किंग चार्ल्स तृतीय की पत्नी कंसोर्ट कैमिला को सौंपा गया था। लेकिन क्वीन कैमिला ने इस विवादित ताज को पहनने से इनकार कर दिया था। अब ताजा खबर ये है कि मई में जनता के लिए लंदन के टॉवर पर ब्रिटेन के क्राउन ज्वेल्स के एक नए प्रदर्शन के हिस्से के रूप में “विजय के प्रतीक” के रूप में इसे प्रदर्शित किया जाएगा। 

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ब्रिटेन के महलों का प्रबंधन करने वाली धर्मार्थ संस्था हिस्टोरिक रॉयल पैलेस (HRP) ने इस सप्ताह कहा कि नई ज्वेल हाउस प्रदर्शनी वस्तुओं और दृश्य अनुमानों के संयोजन के माध्यम से कोहिनूर – जिसे कोह-ए-नूर के रूप में भी जाना जाता है, इसके इतिहास का पता लगाएगी। ब्रिटेन के महलों का प्रबंधन देखने वाली संस्था ‘हिस्टोरिक रॉयल पैलेसेज’ (एचआरपी) ने इस सप्ताह कहा था कि प्रदर्शनी में कोहिनूर के इतिहास को भी प्रदर्शित किया जाएगा। दिवंगत महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के ताज में यह हीरा जड़ा हुआ है, जिसे पहनने से नयी महारानी कैमिला ने इनकार कर दिया था। अब यह ताज “टावर ऑफ लंदन” में रखा हुआ है।

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कोहिनूर की कहानी

भारत से ब्रिटेन पहुंचे कोहिनूर 105.6 कैरेट का है। इसे दुनिया का सबसे बड़ा हीरा माना जाता है। इसका इतिहास पांच हजार साल से भी पुराना है। हीरे का वर्तमान नाम फारसी में है जिसका मतलब होता है रोशनी का पहाड़। जानकारों की मानें तो पांच हजार साल पहले इस हीरे की खोज आंध्र प्रदेश के गोलकुंडा की खदानों में खुदाई के दौरान हुई थी। इसके बाद 1304 में ये मालवा पहुंचा। यहां से 1306 में ओरुगल्लु, 1323 में दिल्ली, 1339 में समरकंद उज्बेकिस्तान, 1526 में वापस दिल्ली, 1739 में पार्शि (मौजूदा समय में ईरान), 1747 में काबुल अफगानिस्तान, 1800 में पंजाब, 1849 में लाहौर, 1854 में ये ब्रिटेन चला गया। 

 



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