जैसा नाना वैसा नाती, 1965 की हार से बौखलाए जुल्फिकार ने UN में कहा- Indian dogs are leaving, दूसरे देशों ने दी ऐसी प्रतिक्रिया

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बिलावल भुट्टो ने अमेरिका में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अधिवेशन से इतर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारत सरकार को महात्मा गांधी की बजाय हिटलर से प्रभावित बताया था। पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर भी अमर्यादित टिप्पणी की थी। बिलावल ने पीएम मोदी को गुजरात का कसाई बताया था। वैसे आपको बता दें कि भारत और भारतीयों को लेकर ये कोई पहली बार नहीं है जब भुट्टो परिवार की तरफ से ऐसी अमर्यादित भाषा इस्तेमाल की गई हो। इसके पहले बिलावल के नाना और पाकिस्तान के पूर्व पीएम जुल्फिकार अली भुट्टो ने भी भारतीयों को कुत्ते कहकर संदर्भित किया था। 

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1965 युद्ध की शुरुआत अप्रैल में रन ऑफ कच्छ में पाकिस्तान के ऑपरेशन डेजर्ट हॉक से हुआ। भारत ने 28 अगस्त को हाजीपीर पर कब्जा कर लिया। इसके तुंरत बाद पाकिस्तान ने अपना तीसरा ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम शुरू कर दिया। 1 सितंबर को छम्ब से भारत में घुसकर वह अखनूर पुल तक आ पहुंचा। यहां से पाकिस्तान का ध्यान बंटाने के लिए भारत ने 6 सितंबर को पंजाब फ्रंट खोला और फौजें बरकी तक जा पहुंची, लाहौर अब दूर नहीं था। 1965 में पाकिस्तानियों ने भारत को सैन्य रूप से कम करके आंका था। वे सफल नहीं हुए। 1965 के युद्ध के समय सैन्य रूप से भारत का पलड़ा भारी था, संयुक्त राष्ट्र महासचिव यू थांट ने 3 सितंबर, 1965 को इस मामले को सुरक्षा परिषद में लाया। पहले पीएम शास्त्री ने एमसी छागला हमारे प्रतिनिधि के रूप में भेजने का निर्णय लिया। लेकिन फिर भुट्टो द्वारा कश्मीर राग और बदजुबानी का मुकाबला करने के लिए अपने विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह को भेजने का फैसला किया। सिंह और भुट्टो एक-दूसरे को जानते थे क्योंकि वे लगभग छह महीने से बातचीत कर रहे थे, और सिंह के पास बेपरवाह लंबे समय तक बोलने में सक्षम होने का एक बड़ा उपहार था।

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1965 में संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन पर तैनात नटवर सिंह ने अंग्रेजी अखबार द हिंदू में लिखे एक लेख में बताया कि उन्होंने विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह से कहा ‘सर, हमें कुछ करना होगा। भुट्टो इस तरह के आपत्तिजनक भाषण देते हैं, और इससे बच जाते हैं, और हमें यूएनएससी को एक कड़ा संदेश देना होगा। तो उन्होंने कहा, “हमें क्या करना चाहिए? बृजेश मिश्रा और नटवर सिंह ने कहा, “अगली बार जब वह बोलेंगे तो हम वॉक आउट कर जाएंगे। अब तक न तो स्वर्ण सिंह और न ही जी पार्थसारथी ने इतना अपरंपरागत कुछ किया था। लेकिन हम अड़े रहे, इसलिए स्वर्ण सिंह ने पीएम शास्त्री को फोन किया। शास्त्रीजी ने कहा, “सरदार साहब आप मौके पर हैं, आप तय करें कि क्या करना है।

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सरदार साहब ने व्यवस्था का प्रश्न पूछा। भुट्टो ने आपत्ति जताई। स्वर्ण सिंह आगे बोलते रहे। उनके भाषण के अंत में हम चारों: सिंह, पार्थसारथी, मिश्रा और मैं खड़े हुए और बाहर निकले। जैसे ही हम बाहर निकले, भुट्टो ने कहा, “भारतीय कुत्ते जा रहे हैं।” लेकिन भुट्टो का बिंदु-स्कोरिंग भाषण अदूरदर्शी था, और हमारे वॉक आउट का यूएनएससी पर बड़ा प्रभाव पड़ा। भुट्टो के भाषण पर हमारी प्रतिक्रिया से सभी स्तब्ध थे, उन्होंने कश्मीर पर भारत और पाकिस्तान के साथ बातचीत में रुचि खो दी। नतीजतन, 1971 के युद्ध के बाद एक प्रस्ताव को छोड़कर, यूएनएससी में अगले कुछ दशकों तक कश्मीर का शायद ही कोई संदर्भ आया। वहीं भुट्टो की आपत्तिजनक भाषा पर दूसरे देशों की तरफ से भी कड़ी प्रतिक्रिया दी गई। 



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