1992 Vachathi Brutality | 31 साल पहले 200 सरकारी अधिकारियों ने दिया था जघन्य अपराध को अंदाज, छापेमारी के नाम पर महिलाओं के साथ बलात्कार, कोर्ट ने अब किया पीड़ितो के साथ इंसाफ

स्टोरी शेयर करें


चेन्नई। कहते है कि घटनाएं पुरानी हो जाती है लेकिन अपराध नहीं। देश का न्यापालिका अपराध सिद्ध होने के बाद न्याय जरुर करती है फिर न्याय देने में चाहें 31 साल का ही समय क्यों न लग जाए। मद्रास उच्च न्यायालय ने एक इतिहास में दर्ज करने वाला बड़ा फैसला लिया है। ये फैसला उस अपराध के लिए किया गया है जो 31 साल पहले हुआ था। 20 जून 1992 की शाम को वन पुलिस और राजस्व विभाग के अधिकारी तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले में चिथेरी पहाड़ियों के पास वाचथी गांव में इस संदेह में घुस गए कि ग्रामीण चंदन की तस्करी कर रहे थे और डाकू वीरप्पन की सहायता कर रहे थे। ग्रामीणों के ख़िलाफ़ राज्य की हिंसा अगले तीन दिनों तक जारी रही। आधिकारियों ने गांव में खूब मनमानी की महिलाओं के साथ मारपीट और उनका बलात्कार किया। 

इसे भी पढ़ें: Allahabad High Court ने संपत्ति विवाद में भूमिका को लेकर गोंडा के भाजपा सांसद को दिया नोटिस

 

मद्रास उच्च न्यायालय ने वन विभाग के अधिकारियों और पुलिसकर्मियों की छापेमारी के दौरान महिलाओं के यौन उत्पीड़न और आदिवासियों पर अत्याचार के करीब 30 वर्ष पुराने मामले में निचली अदालत द्वारा 215 लोगों की दोषसिद्धि और सजा के आदेश को शुक्रवार को बरकरार रखा।
यह मामला तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले के वाचथी गांव में 1992 में चंदन की लकड़ी की तस्करी के खिलाफ पुलिस और वन विभाग द्वारा की गई छापेमारी से संबंधित था जिससे समूचे राज्य में बड़े पैमाने पर आक्रोश फैल गया था। मामले की केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने जांच की थी।

इसे भी पढ़ें: Supreme Court पहुंची केजरीवाल सरकार, कहा- सिविल कर्मचारी नहीं कर रहे आदेश का पालन, तुरंत हो सुनवाई

 

धर्मपुरी की निचली अदालत ने 2011 में 215 लोगों को दोषी ठहराया था और एक से 10 वर्ष तक की जेल की सजा सुनाई थी। संयोग से, उच्च न्यायालय का आदेश निचली अदालत के फैसले के ठीक 12 वर्ष बाद आया। निचली अदालत ने 29 सितंबर, 2011 को फैसला सुनाया था।
न्यायमूर्ति पी. वेलमुरुगन ने शुक्रवार को 18 महिलाओं को तत्काल 10-10 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी निर्देश दिया जो धर्मपुरी में हुई इस कुख्यात घटना के दौरान यौन उत्पीड़न का शिकार हुई थीं। दोषियों की कई अपील को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति वेलमुरुगन ने कहा, ‘‘इन अपील में कोई दम नहीं है। इसलिए इन्हें खारिज किया जाता है।’’

न्यायाधीश ने राज्य सरकार को बलात्कार पीड़िताओं को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान करने और दोषियों से 50 प्रतिशत राशि वसूलने का निर्देश दिया।
अदालत ने राज्य सरकार को उन 18 पीड़ितों या उनके परिवार के सदस्यों कोस्व-रोजगार या स्थायी नौकरी के माध्यम से उपयुक्त रोजगार प्रदान करने का भी निर्देश दिया, जिनकी रोजी रोटी खत्म हो गई थी।
न्यायाधीश ने राज्य सरकार को संबंधित अवधि के दौरान तत्कालीन जिलाधिकारी, तत्कालीन पुलिस अधीक्षक और तत्कालीन जिला वन अधिकारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दिया।

न्यायाधीश ने कहा कि बयानों और दस्तावेजी साक्ष्यों को पढ़ने से यह स्पष्ट है कि छापेमारी करते समय सभी अपीलकर्ता तलाशी के उद्देश्य से भटक गए थे।
धर्मपुरी अदालत ने 1992 में हुई घटना के संबंध में भारतीय वन सेवा (आईएफएस) के चार अधिकारियों समेत 126 वनकर्मियों, 84 पुलिसकर्मियों और राजस्व विभाग के पांच लोगों को दोषी करार दिया था। कुल 269 आरोपियों में से 54 की मुकदमे की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी। 



स्टोरी शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Pin It on Pinterest

Advertisements