हाथी दांत के लिए सैकड़ों हाथियों की जान लेने वाला वीरप्पन करीब तीन दशकों तक सुरक्षाबलों के लिए चुनौती बना रहा। इस दौरान उसने डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतारा था। इनमें आधे से ज्यादा पुलिसकर्मी थे। इसमें सबसे मशहूर किस्सा वन अधिकारी पी श्रीनिवास का है।
वन अधिकारी से लिया बदला
श्रीनिवास ने पहली बार वीरप्पन को गिरफ्तार किया था। हालांकि, वह ज्यादा देर तक पुलिस की गिरफ्त में नहीं रहा, लेकिन श्रीनिवास से बदला लेने की ठान ली। कहा जाता है कि उसने श्रीनिवास का सिर काट दिया। इसके बाद कटे सिर के साथ उसने अपने साथियों के साथ फुटबॉल खेला था।
पकड़ाते ही फरार हुआ
श्रीनिवास ने जब उसे गिरफ्तार किया था तो उसने तेज सिरदर्द का बहाना कर तेल की मांग की। जब तेल दिया गया तो उसने सिर के बजाय हाथों में लगा लिया और हथकड़ी को बाहर निकालकर फरार हो गया।
नवजात बेटी की ली जान
उसकी क्रूरता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि पुलिस से बचने के लिए उसने अपनी नवजात बेटी तक की जान ले ली थी। वीरप्पन जंगल में अपने सौ साथियों के साथ छिपा हुआ था। पुलिस उसके पीछे पड़ी थी। उसे डर था कि नवजात बच्ची के रोने से पुलिस उसे पकड़ लेगी। उसने अपने हाथों बच्ची की हत्या कर उसका शव जमीन में गाड़ दिया। बाद में जब एसटीएफ वहां पहुंची तो जमीन के नीचे से शव निकाला।
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ऐसे मारा गया था वीरप्पन
18 अक्टूबर, 2004 को वीरप्पन अस्पताल जा रहा था। इसकी भनक एसटीएफ को लग गई। एसटीएफ ने उसके रास्ते में बीच सड़क पर ट्रक खड़ा कर दिया। ट्रक में 22 जवान मौजूद थे। वीरप्पन का एंबुलेंस ट्रक के पास पहुंचा तो एसटीएफ ने उसे सरेंडर करने को कहा। जवाब में वीरप्पन के सहयोगियों ने एंबुलेंस के अंदर से ही फायरिंग शुरू कर दी। इसके बाद एसटीएफ के जवानों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी और ग्रेनेड फेंकने लगे। एक गोली वीरप्पन के सिर में लगी और उसकी घटनास्थल पर ही मौत हो गई।