जोशीमठ के धीरे-धीरे ‘धंसने’ को लेकर निवासियों के विरोध के कुछ दिनों बाद, विशेषज्ञों की एक टीम ने मंगलवार को उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित इस शहर का मौके पर निरीक्षण किया।
बद्रीनाथ का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले जोशीमठ के कई घरों, दुकानों और होटलों में दरारें आने की खबरों के बाद यह कदम उठाया गया है।
अधिकारियों ने बताया कि विशेषज्ञों की पांच सदस्यीय टीम ने उन भवनों का निरीक्षण किया जिनमें दरारें आई हैं। टीम ने प्रभावित लोगों से बातचीत की और जिला प्रशासन को अपनी प्रतिक्रिया दी।
इस टीम में वरिष्ठ अधिकारी, भूवैज्ञानिक विशेषज्ञ और इंजीनियर शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि चमोली के जिलाधिकारी हिमांशु खुराना ने टीम जोशीमठ भेजी और अधिकारियों को इंजीनियर से परामर्श लेने के बाद तुरंत सुरक्षात्मक कार्य शुरू करने का निर्देश दिया।
जिला सूचना अधिकारी रवींद्र नेगी ने कहा कि खुराना ने जोशीमठ के लिए जल निकासी योजना तैयार करने को भी कहा है।
जिलाधिकारी ने अधिकारियों को जोशीमठ की तलहटी में मारवाड़ी पुल और विष्णुप्रयाग के बीच अलकनंदा नदी से होने वाले कटाव पर काबू पाने के लिए सुरक्षा दीवार के निर्माण की खातिर ‘‘आपदा जोखिम न्यूनीकरण योजना’’ के तहत प्रस्ताव तैयार करने को भी कहा।
विशेषज्ञों की इस टीम में नगर पालिका अध्यक्ष शैलेंद्र पंवार, अनुमंडलाधिकारी (एसडीएम) कुमकुम जोशी, भूवैज्ञानिक दीपक हटवाल, कार्यपालक अभियंता (सिंचाई) अनूप कुमार डिमरी और जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी एन. के. जोशी शामिल थे।
जोशीमठ के धीरे-धीरे ‘‘धंसने’’ से प्रभावित स्थानीय लोगों ने 24 दिसंबर को प्रशासन पर कोई सुधारात्मक कदम नहीं उठाने का आरोप लगाते हुए शहर में विरोध मार्च निकाला था। जोशीमठ नगरपालिका के एक सर्वेक्षण के अनुसार, एक साल में शहर के 500 से अधिक घरों में दरारें आ गई हैं, जिससे वे रहने योग्य नहीं रह गए हैं।
उत्तराखंड सरकार द्वारा गठित एक विशेषज्ञ पैनल ने पाया है कि जोशीमठ के कई हिस्से मानव निर्मित और प्राकृतिक वजहों से ‘‘धंस’’ रहे हैं।