मुरुगा मठ के महंत के खिलाफ चित्रदुर्ग की अदालत में जारी कार्यवाही पर लगी रोक

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कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मुरुगा मठ के महंत शिवमूर्ति शरण की गिरफ्तारी के लिए गैर-जमानती वारंट जारी करने के चित्रदुर्ग की एक अदालत के आदेश पर गंभीर आपत्ति जताते हुए मंगलवार को उनके खिलाफ द्वितीय अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के समक्ष लंबित सभी कार्यवाही पर रोक लगा दी।
न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने निचली अदालत में इस मामले में राज्य सरकार की ओर से पेश हुए विशेष लोक अभियोजक के खिलाफ भी जांच का निर्देश दिया।
जिला मुख्यालय शहर चित्रदुर्ग में सोमवार को निचली अदालत ने मुरुगराजेंद्र बृहन मठ के महंत शिवमूर्ति शरण के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया था, जिसके बाद महंत को चित्रदुर्ग को गिरफ्तार कर लिया गया और एक अदालत के समक्ष पेश किये जाने के पश्चात उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

उच्च न्यायालय ने सोमवार शाम को ही महंत के खिलाफ जारी गैर-जमानती वारंट पर रोक लगाते हुए तत्काल उन्हें रिहा करने का आदेश दिया।
महंत के खिलाफ ‘ यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण’ (पॉक्सो) अधिनियम के तहत दर्ज दूसरे मामले में यह वारंट जारी किया गया था, जबकि उच्च न्यायालय ने पॉक्सो के तहत दर्ज पहले मामले में उन्हें जमानत दी थी।
उच्च न्यायालय ने महंत के खिलाफ पॉक्सो कानून के दो मामलों में से एक में जमानत के लिए अनेक शर्तें लगाई हैं, जिनमें मामलों में जांच पूरी होने तक उन्हें चित्रदुर्ग जिले में प्रवेश की अनुमति नहीं मिलना शामिल है। महंत को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए मामले की सुनवाई में शामिल होने का आदेश दिया गया।

इस मामले में विशेष लोक अभियोजक द्वारा निचली अदालत के समक्ष एक ज्ञापन दायर करने के बाद गैर-जमानती वारंट जारी किया गया था, जिसमें कहा गया था कि वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पॉक्सो के दूसरे मामले में महंत को अदालत में उपस्थित होने की कोई अनुमति नहीं दी गयी थी।
वहीं, पॉक्सो के दूसरे मामले को चुनौती देने वाली याचिका भी उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की पीठ के समक्ष थी, जिसने याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की पीठ ने फैसला सुरक्षित रखते हुए निचली अदालत को फैसला सुनाने तक मामले की सुनवाई स्थगित करने का भी निर्देश दिया है।

महंत शिवमूर्ति शरण के वकील ने मंगलवार को न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की पीठ के समक्ष बताया कि निचली अदालत ने पूर्वाग्रहपूर्ण तरीके से व्यवहार किया है और इसलिए मुकदमे को किसी अन्य अदालत में स्थानांतरित किया जाना चाहिए।
महंत के वकील ने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें जमानत दिए जाने के बाद भी, निचली अदालत ने उनकी तत्काल रिहाई का आदेश नहीं दिया और देरी के कारण उन्हें तीन और दिन हिरासत में बिताने पड़े।
उच्च न्यायालय ने कहा कि निचली अदालत ने गलतियां की हैं और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आरोपी कौन है, लेकिन उच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन नहीं करना स्वीकार नहीं किया जा सकता।अदालत ने कहा कि जिला न्यायाधीश ने उच्च न्यायालय के आदेश के प्रति अनभिज्ञता दिखाई है।



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