नमस्कार, प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में आप सभी का स्वागत है। आज के कार्यक्रम में बात करेंगे रबड़ की तरह खिंचते चले जा रहे रूस-यूक्रेन युद्ध की, आम बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए हुए बजटीय आवंटन की, रक्षा क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता की और पाकिस्तान में बिगड़ते हालात की। इस कार्यक्रम में हमेशा की तरह हमारे साथ मौजूद रहे ब्रिगेडियर सेवानिवृत्त श्री डीएस त्रिपाठी जी। पेश हैं इस साक्षात्कार के मुख्य अंश-
प्रश्न-1. रूस-यूक्रेन युद्ध को शुरू हुए अब एक वर्ष पूरा हो चुका है। आखिर किस दिशा में जा रहा है यह युद्ध? साथ ही इस युद्ध में अब टैंकों की भूमिका क्यों अहम हो गयी है। हम यह भी जानना चाहते हैं कि शुरू से ही अप्रत्यक्ष रूप से यूक्रेन की मदद कर रहे अमेरिका ने आखिर अपने एफ-16 लड़ाकू विमान यूक्रेन को देने से क्यों इंकार कर दिया?
उत्तर- आज के परिदृश्य में युद्ध एक आपदा नहीं है बल्कि एक बिजनेस भी है। इस युद्ध के जरिये बड़ी-बड़ी हथियार कंपनियों को बड़े-बड़े बिजनेस मिल रहे हैं इसलिए वह भी नहीं चाहतीं कि यह युद्ध खत्म हो। इसलिए रूस से मुकाबले के लिए यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति की जा रही है। युद्ध में टैंकों की भूमिका इसलिए भी अहम है क्योंकि यदि सर्दियां खत्म होने के बाद युद्ध भीषण रूप लेता है तो टैंकों की भूमिका अहम हो सकती है। इसके अलावा यूक्रेन में टाइटेनियम का खजाना हासिल करने के लिए भी रूस आतुर है इसलिए वह पीछे हटने को राजी नहीं है। हम अपने दर्शकों को बताना चाहेंगे कि टाइटेनियम एक ऐसा मैटेरियल होता है जिसका इस्तेमाल सबसे एडवांस्ड मिलिट्री टेक्नोलॉजी जैसे फाइटर जेट्स, हेलीकॉप्टर्स, नौसेना के जहाज, टैंक, लंबी दूरी की मिसाइलें और अन्य हथियारों को बनाने में किया जाता है। यूक्रेन में चूंकि टाइटेनियम का खजाना है इसीलिए सब इसको हासिल करना चाहते हैं।
प्रश्न-2. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की नाटो से आधुनिक और घातक हथियारों की क्यों मांग कर रहे हैं? क्या नाटो के देश उनकी यह माँग पूरी करेंगे?
उत्तर- अमेरिका और जर्मनी द्वारा यूक्रेन को उन्नत युद्धक टैंक भेजने की घोषणा किए जाने के बाद व्हाइट हाउस ने कहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन का लक्ष्य यूक्रेन को वे आवश्यक क्षमताएं उपलब्ध कराना हैं, जो रूसी सैनिकों के खिलाफ युद्ध में सफल होने के लिए आवश्यक हैं। अमेरिका ने घोषणा की है कि वह यूक्रेन को 31 एम-1 ‘अब्राम्स’ टैंक भेजेगा। जर्मनी द्वारा 14 ‘लैपर्ड 2 ए 6’ टैंक भेजने पर सहमत होने के बाद अमेरिका ने यह फैसला किया है। इसके अलावा जर्मन दो अन्य बटालियनों को संगठित करने में मदद करेंगे, ब्रिटेन ने अपने ‘चैलेंजर’ टैंक भेजने पर सहमति जताई है और फ्रांसीसी भी बख्तरबंद वाहन मुहैया कर योगदान देंगे। सर्दियों में रूसी और यूक्रेनी सेना के बीच लड़ाई धीमी हुई है, लेकिन मौसम में सुधार के साथ इसकी तीव्रता बढ़ने की आशंका है। अमेरिका के रुख को देखकर लगता है कि वह यूक्रेन को न केवल निवारक क्षमताएं उपलब्ध कराना चाहता है, बल्कि यदि रूस भविष्य में फिर यूक्रेन पर हमला करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सीमाएं पार करने का विनाशकारी निर्णय लेता है तो उसके लिए भी वह यूक्रेन को रक्षात्मक क्षमताओं से लैस करना चाहता है। इसलिए नाटो के अन्य देश भी यूक्रेन की मदद करेंगे। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की समझ रहे हैं कि मौसम में सुधार के बाद हमले तेज होंगे इसलिए वह घातक हथियारों का अपना जखीरा बढ़ाना चाहते हैं।
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प्रश्न-3. भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से बढ़ रहा है। खासतौर पर निजी क्षेत्र को रक्षा उद्योग में काफी बढ़ावा दिया जा रहा है। इसलिए हम आपसे जानना चाहते हैं कि हम रक्षा उद्योग से जुड़े किन क्षेत्रों में आगे बढ़ रहे हैं और वर्तमान में हमारी क्या क्षमताएँ हैं? वैसे रक्षा क्षेत्र में हमारी आत्मनिर्भरता कितनी जरूरी हो गयी है इसका अंदाजा अभी एक दिन पहले ही थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे की ओर से दिये गये बयान से भी लगाया जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा है कि कोई भी देश नवीनतम ‘‘अत्याधुनिक’’ प्रौद्योगिकियों को साझा करने को तैयार नहीं है, जिसका यह मतलब है कि देश की सुरक्षा न तो ‘‘आउटसोर्स’’ की जा सकती है और ना ही दूसरों की उदारता पर निर्भर रहा जा सकता है।
उत्तर- भारत में रक्षा उत्पादन क्षेत्र में निजी कंपनियों को बढ़ावा देकर सरकार ने पिछले दिनों जो कदम उठाये थे उसके परिणाम अब आने लगे हैं। कई सैन्य उपकरणों का हम अब पूरी तरह से भारत में ही निर्माण कर रहे हैं जिससे हमारी विदेशों पर निर्भरता कम हुई है। हम रक्षा उपकरणों के विश्व में सबसे बड़े आयातक होने की भूमिका से निकल कर अब रक्षा उत्पादों के निर्यातक की भूमिका में आने जा रहे हैं। सरकार की पहल पर हाल में कई रक्षा उपकरणों संबंधी जो प्रदशर्नियां लगीं उसमें भी आप देखेंगे कि रक्षा क्षेत्र में सिर्फ बड़े उद्योग घराने ही रुचि नहीं ले रहे बल्कि कई स्टार्टअप भी सामने आ रहे हैं जोकि भारत की रक्षा क्षमता को बढ़ा रहे हैं। रक्षा उपकरणों के आयात से हमारी जो विदेशी मुद्रा खर्च होती थी वह भी अब बचने लगी है जोकि बड़ी बात है। जनरल पांडे ने सही कहा है कि देश की सुरक्षा ना तो आउटसोर्स की जा सकती है ना ही इसे दूसरों की उदारता पर छोड़ा जा सकता है। रक्षा क्षेत्र में आपको यह भी ध्यान देना होगा कि विदेशों में भी बड़ी रक्षा कंपनियां सरकारी नहीं बल्कि निजी हैं। हमारे यहां जिस तरह बड़ी-छोटी कंपनियों ने रक्षा उत्पादों के निर्माण को लेकर रुचि दिखाई है उसके जल्द ही सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे।
प्रश्न-4. आम बजट की घोषणा हो चुकी है। रक्षा क्षेत्र के लिए आवंटित राशि 13 प्रतिशत बढ़ाकर 5.94 लाख करोड़ रुपये कर दी गई है। क्या वर्तमान चुनौतियों को देखते हुए यह बजटीय आवंटन पर्याप्त है?
उत्तर- यह बजट इस समय की वैश्विक चुनौतियों को देखते हुए काफी हद तक सकारात्मक है। इस बार बजट में जो वृद्धि की गयी है वह वैश्विक चुनौतियों को देखते हुए तीनों सेनाओं की जरूरतों को पूरा करने में सहायक सिद्ध होंगे। वित्त वर्ष 2023-24 के आम बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए आवंटित राशि 13 प्रतिशत बढ़ाकर 5.94 लाख करोड़ रुपये करना सरकार का साहसपूर्ण निर्णय है क्योंकि महामारी के बाद अर्थव्यवस्था तमाम तरह की चुनौतियों का सामना कर रही है। बजट में सशस्त्र बलों के लिहाज से पूंजीगत व्यय के लिए कुल 1.62 लाख करोड़ रुपये अलग रखे गए हैं। इनमें नए हथियार, विमान, युद्धपोत और अन्य सैन्य साजोसामान की खरीद शामिल है।
प्रश्न-5. पाकिस्तान में विस्फोट बढ़ते जा रहे हैं। पेशावर की मस्जिद में बड़ा धमाका हुआ, वहां सरकारी अधिकारियों पर हमले बढ़ रहे हैं इसके साथ ही सत्ता पक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर आतंक में संलिप्त होने के आरोप लगा रहे हैं। इसे कैसे देखते हैं आप?
उत्तर- हाल ही में पेशावर की मस्जिद में बड़ा धमाका हुआ, इसके अलावा वहां सरकारी अधिकारियों पर हमले बढ़ रहे हैं इसके साथ ही सत्ता पक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर आतंक में संलिप्त होने के आरोप लगा रहे हैं, यह सब दर्शा रहा है कि पाकिस्तान आर्थिक और सामाजिक अराजकता की तरफ ही नहीं बल्कि राजनीतिक और सैन्य अराजकता की तरफ भी बढ़ रहा है। इसके अलावा पाकिस्तान के आंतरिक मामलों के मंत्री राणा सनाउल्लाह ने नेशनल असेंबली में खुद स्वीकार किया है कि मुजाहिदीन को तैयार करना और उनके साथ युद्ध में जाना एक सामूहिक गलती थी। यह सब दर्शाता है कि पाकिस्तान के बारे में भारत बरसों से दुनिया को जो बताता रहा है उसे अब पाकिस्तान खुद स्वीकार रहा है। इसके अलावा अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों को यह चिंता है कि पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं और यदि यह गलत हाथों में पड़ गये तो दुनिया के लिए खतरा बढ़ सकता है इसीलिए सीधे नहीं तो दूसरे तीसरे माध्यम से उसकी कुछ ना कुछ मदद की जा रही है।