नयी दिल्ली। उच्च न्यायपालिका में सदस्यों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पर सरकार द्वारा नए सिरे से किए गए हमले के बीच, इस वर्ष विभिन्न उच्च न्यायालयों में “रिकॉर्ड” 138 न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई।
कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल उठा रहे कानून मंत्री किरेन रीजीजू ने इसे संविधान के लिए “प्रतिकूल” करार दिया।
उन्होंने यह भी कहा कि उच्च न्यायपालिका में रिक्तियों और नियुक्तियों का मुद्दा तब तक लटका रहेगा जब तक कि इसके लिए कोई नई व्यवस्था नहीं बनाई जाती है।
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कॉलेजियम प्रणाली को खत्म करने की मांग करते हुए, संसद ने – लगभग सर्वसम्मति से – राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम पारित किया था जिसे संवैधानिक दर्जा दिया गया था।
सरकार ने 13 अप्रैल 2015 को संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014 और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 को लागू किया।
दोनों अधिनियमों को हालांकि उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी, जिसने अंततः 16 अक्टूबर, 2015 को दोनों कानूनों को असंवैधानिक और अमान्य घोषित कर दिया।
फैसले के बाद कॉलेजियम प्रणाली फिर अमल में आ गई।
न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर सरकार और उच्चतम न्यायालयकॉलेजियम में गतिरोध के बीच एक संसदीय समिति ने हाल ही में कार्यपालिका और न्यायपालिका को उच्च न्यायालयों में रिक्तियों की “सतत समस्या” से निपटने के लिए “आउट ऑफ द बॉक्स थिंकिंग” (कुछ अलग विचार) के साथ आने के लिए कहा था।
समिति ने यह भी कहा कि यह जानकर “आश्चर्य” हुआ कि सर्वोच्च न्यायालय और सरकार उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया ज्ञापन के संशोधन पर आम सहमति पर पहुंचने में विफल रहे हैं, जबकि दोनों इस पर “करीब सात सालों से” विचार कर रहे हैं।
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समिति ने सरकार और न्यायपालिका से संशोधित प्रक्रिया ज्ञापन को अंतिम रूप देने की अपेक्षा की, जो अधिक कुशल और पारदर्शी हो।
प्रक्रिया ज्ञापन दस्तावेजों का एक समूह है जो सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति, पदोन्नति और स्थानांतरण पर मार्गदर्शन करता है।
सरकार ने 25 नवंबर को उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम से उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति से जुड़ी 20 फाइलों पर पुनर्विचार करने को कहा था।
सरकार ने अनुशंसित नामों पर “कड़ी आपत्ति” व्यक्त की थी।
इन 20 मामलों में से 11 नए मामले थे और नौ मामलों में शीर्ष अदालत के कॉलेजियम द्वारा नाम पुनर्विचार के लिये भेजे गए थे।
पिछले साल के आखिर में संसद ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन को मंजूरी दी थी।
इस साल जून में, सरकार ने स्वैच्छिक रूप से मतदाता सूची आंकड़ों को आधार से जोड़ने की अनुमति देने वाले नियम जारी किए, चुनावी कानून को सेवारत मतदाताओं के लिए लिंग तटस्थ बनाया और युवा नागरिकों को वर्तमान साल में एक बार के बजाय वर्ष में चार बार मतदाता के रूप में पंजीकृत करने में सक्षम बनाया।
अब एक नागरिक जो किसी कैलेंडर वर्ष में एक जनवरी या एक अप्रैल अथवा एक जुलाई या फिर एक अक्टूबर को 18 वर्ष का हो जाता है, वह तत्काल मतदाता पंजीकरण के लिए आवेदन कर सकता है।
इससे मतदाताओं की संख्या में वृद्धि होने की उम्मीद है। इससे पहले एक जनवरी ही मतदाता सूची में पंजीकरण के लिये निर्धारित तिथि थी।
निर्वाचन कानूनों को लिंग तटस्थ बनाने के लिये शब्द “पत्नी” को “जीवनसाथी” से बदला गया जिससे कानूनों को लैंगिक रूप से तटस्थ बनाया जा सकेगा, जो सेवारत मतदाता की पत्नी या पति को उपलब्ध मतदान सुविधा का लाभ उठाने की अनुमति देगा।
दूर-दराज के इलाकों में तैनात सैनिक या विदेश में भारतीय मिशन के सदस्य कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें सेवारत मतदाता माना जाता है।
चुनाव कानून के प्रावधानों के अनुसार, एक सैन्य अधिकारी की पत्नी एक सेवा मतदाता के रूप में नामांकित होने की हकदार है, लेकिन एक महिला सैन्य अधिकारी का पति नहीं है। हालांकि अब यह बदल गया है।
इसके अलावा कर्नाटक उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रितुराज अवस्थी ने 22वें विधि आयोग के अध्यक्ष के तौर पर शपथ ली।
वर्तमान विधि आयोग का गठन 21 फरवरी, 2020 को किया गया था, लेकिन इसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति आयोग के तीन साल के कार्यकाल की समाप्ति से महीनों पहले अक्टूबर में की गई थी।