आंतरिक प्रणाली की असफलता
वित्तीय लेनदेन की कार्यप्रणाली पूरे भरोसे की होती है। बैंकों में भरोसा टूटने की शुुरुआत निचले पायदान से शुरू होती है। निचले स्तर से शुरू हुई गड़बड़ी को समय रहते नियंत्रित ना कर पाने की वजह से, जब बड़े – बड़े घोटाले हो जाते हैं, तब पूरे तंत्र की नींद खुलती है। ऐसा होने तक सांठगांठ किए अपराधी बड़ी राशि का चूना लगाकर विदेशों में भाग जाते हैं। बैंकों मे लगातार होती धोखाधड़ी, आंतरिक प्रणाली की असफलता से होती है, ऐसा भी अक्सर सुनने को मिलता है।
नरेश कानूनगो, देवास, मध्यप्रदेश
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बैंकिंग प्रणाली की खामियां
बड़े घोटाले जहां बैंकिंग व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर करते हैं, वहीं प्रबंधन की लापरवाही को भी दर्शाते हैं। इसके लिए हर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। पर इतना जरूर है कि बैंकों ने ऐसे मामलों में लापरवाही बरती और उचित नियमों का पालन नहीं किया। अगर समय-समय पर ग्राहकों के खातों पर ध्यान दिया जाता, तो इतने बड़े-बड़े घोटाले देश में नहीं होते। सच तो है कि बैंक इस तरह की जिम्मेदारी निभाने में विफल रहे। अब सरकारी बैंकों के कामकाज में कमियों को दूर करने और बैंकिंग प्रणाली की खामियों को दूर करने का है। जरूरत है कि इनमें पारदर्शिता लाई जाए। बड़े पदों पर नियुक्तियों तथा तबादलों में मनमानी तथा राजनीतिक हस्तक्षेप बंद किया जाए। लोगों का इनसे विश्वास न हट जाए, ऐसा प्रयास होना चहिए।
-अजिता शर्मा, उदयपुर
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ऑडिट के नाम पर खानापूर्ति
हमारे देश में बैंक घोटाले इसलिए नहीं रुक पा रहे हैं क्योंकि यहां बैंकिंग व्यवस्था ठीक नहीं है। घोटालों की जांच ठीक तरह से न होने से भी बैंक घोटाले होते जाते हैं। देश में नौकरशाही में बदलाव की जरूरत है। ऑडिट के नाम पर खानापूर्ति होती हैं जिसमें कहीं न कहीं लीकेज है।
-रिया असाटी, बड़ा मलहेरा छतरपुर, एमपी
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जांच प्रणाली का अत्यंत धीमा होना
प्रभावशाली व्यक्ति बैंक प्रबंधन से मिलीभगत कर योजनाबद्ध तरीके से लोन प्राप्त करके विदेश चले जाते हैं क्योंकि उन्हें कानून का डर नहीं होता है। साथ ही वह यह भी जानते हैं कि हमारे देश में जांच प्रणाली अत्यंत धीमी है। राजनीतिक दखल दिनोंदिन बैंकिंग सेवा में बढ़ता जा रहा है और ऑडिट मात्र औपचारिकता रह गई है। आरबीआई केवल गाइडलाइन जारी करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेता है। जबकि बैंक प्रबंधन के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई तय समय सीमा में की जानी चाहिए। इससे अन्य बैंक भी सबक लेंगे और उनमें भी कहीं ना कहीं भय रहेगा।
-विवेक नंदवाना, कोटा
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कमीशन बड़ी वजह
बैंकों के घोटाले अधिकारियों की मिलीभगत के कारण नहीं रुक रहे हैं। बैंक अपना कमीशन तय करके बड़े-बड़े उद्योगपतियों को करोड़ों रुपए का कर्ज दे देते हैं जो वसूल नहीं हो पाता है। आम ग्राहक बीच में फंसा ही रह जाता है। बड़े-बड़े घोटालों के पीछे नेताओं की दखलंदाजी भी एकवजह है।
लता अग्रवाल, चित्तौडग़ढ़
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बैंकों में घोटाले का बड़ा कारण रसूखदार द्वारा बैंकिंग स्टाफ से मिलीभगत तथा राजनीतिक हस्तक्षेप करवाना है। कर्ज चुकता न करने की मंशा से रसूखदार घोटाले कर विदेश भाग जाते हैं।
-देवेश त्रिपाठी भूपालपुरा, उदयपुर
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सरकारी कार्रवाई का भय नहीं
घोटाले करने वालों को विशेष राजनीतिक दलों का अप्रत्यक्ष सहारा मिलता है। उनको बैंक घोटाले में किसी भी सरकारी कार्रवाई का डर नहीं होता है। इसके अलावा कुछ बैंकों के बड़े अधिकारी अपनी ड्यूटी ईमानदारी से नहीं करते है। इस कारण बैंकों में घोटाले नहीं रुक पा रहे हैं।
खेमू पाराशर, भरतपुर
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