भारत में बैडमिंटन के गॉड कहलाने वाले नंदू नाटेकर और उसके बाद दुनिया में भारत की पहचान बने प्रकाश पादुकोण भी जो मणि भारत के मुकुट में नहीं जड़ पाए थे, वह कारनामा लक्ष्य सेन, किदाम्बी श्रीकांत और एचएस प्रणॉय ने अंजाम दे दिया। लक्ष्य सेन इस समय भारत के नंबर एक और दुनिया के नौवीं वरीयता प्राप्त खिलाड़ी हैं, जबकि किदाम्बी श्रींकात विश्व के नंबर एक खिलाड़ी रह चुके हैं और हाल ही में विश्व चैंपियनशिप के फाइनल तक में पहुंचे थे। इसी विश्व चैंपियनशिप में लक्ष्य सेन ने सेमीफाइनल तक का सफर तय किया था और इसके बाद ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन में तो वह फाइनल तक पहुंचे। इस प्रकार पिछले बारह माह में ही बैडमिंटन के दो सर्वाधिक प्रतिष्ठित टूर्नामेंट विश्व कप और ऑल इंग्लैंड ओपन के फाइनल में भारतीय खिलाडिय़ों के पहुंचने से यह तो स्थापित हो चुका था कि देश व्यक्तिगत तौर पर बैडमिंटन में काफी तरक्की कर रहा है। अब थॉमस कप में पदक हासिल करने से यह भी मुहर लग गई है कि भारत अब एक टीम के रूप में भी दुनिया का शक्तिशाली देश है। थॉमस कप का जो प्रारूप है, उसमें समग्र टीम का मजबूत होना जरूरी होता है। सर्वकालीन महान होने के बावजूद नंदू नाटेकर और प्रकाश पादुकोण भारत को थॉमस कप में संभवत: इसीलिए पदक नहीं दिला पाए थे कि तत्कालीन टीमों में अन्य साथी उतने स्तर के नहीं थे।
चपलता, तेजी और ताकत के इस खेल में मौजूदा भारतीय टीम इस लिहाज से काफी बेहतर है कि तीनों एकल खिलाड़ी रैंकिंग में शीर्ष दस की सूची में शामिल रहे हैं। 29 साल के किदाम्बी श्रीकांत प्रतिष्ठित चाइना सुपर सीरीज चैंपियन हैं और अधिकांश शीर्ष खिलाडिय़ों को वह शिकस्त दे चुके हैं। 21 साल के लक्ष्य सेन भी अपना सामथ्र्य प्रदर्शित कर चुके हैं। ओलंपिक चैम्पियन डेनमार्क के विक्टर एक्सलसेन, विश्व चैंपियन सिंगापुर के लोह कीन येव और दुनिया के तीसरे नंबर के खिलाड़ी डेनमार्क के ही एंडर्स एंटनसन भी लक्ष्य सेन के विरुद्ध उतरते हैं तो उन्हें कमर को पूरी तरह कसना पड़ता है। इसी क्रम में प्रणॉय भी लक्ष्य सेन के कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं, जो आश्वस्त करता है कि भारत की झोली में आगे कई और उपलब्धियां आएंगी।
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