भारत में युवा आबादी दुनिया में सबसे अधिक है। आज के काल खण्ड में तथाकथित राजनीतिक सत्ता के समूह भारतीय युवा शक्ति को लेकर न तो कोई सकारात्मक सोच-समझ पैदा कर पा रहे हैं और न ही भविष्य की युवा आबादी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किसी योजना के निर्माण पर ध्यान दे रहे हैं।
Published: May 13, 2022 08:38:56 pm
अनिल त्रिवेदी
गांधीवादी चिंतक
भारत का नागरिक पढ़ा-लिखा हो या बिना पढ़ा-लिखा, दोनों ही परिस्थितियों में जीवन की समस्याओं को हल करने में जुटा रहता है। निस्संदेह भारत की आबादी बहुत ज्यादा है, पर इसका इस्तेमाल देश के विकास में किया जा सकता है। मुश्किल यह है कि सरकारें आबादी को ही सबसे बड़ी समस्या मानती हैं। इतनी विशाल जनसंख्या वाले देश की सरकारें भारत के लोगों की अनन्त शक्ति को देख-समझ ही नहीं पाती है। इस बात को समझना होगा कि भारत की जीवनी शक्ति,भारत की जनता है। भारत में युवा आबादी दुनिया में सबसे अधिक है। आज के काल खण्ड में तथाकथित राजनीतिक सत्ता के समूह भारतीय युवा शक्ति को लेकर न तो कोई सकारात्मक सोच-समझ पैदा कर पा रहे हैं और न ही भविष्य की युवा आबादी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किसी योजना के निर्माण पर ध्यान दे रहे हैं। सरकारों ने भारत की जनता को मानसिक रूप से दो खानों में विभाजित कर रखा है। जो सत्तारूढ़ समूह में शामिल हैं या उसके निकट हैं, वे हर मामले में विशेष महत्त्व पाने का जतन करते हैं। जो देश के सत्तारूढ़ समूह में शामिल नहीं हैं, वे सबसे उपेक्षित वंचित वर्गों में अपने आप मान लिए जाते हैं।
इस बात को समझना होगा कि आज भी देश के दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों के निवासी अपने आप अपनी समझ व संकल्प से और संघर्ष कर जीते रहने के कौशल के कारण स्वयं अपनी जरूरतों को ही पूरा करने में नहीं लगे हैं, बल्कि उन्होंने देश को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ये लोग जीवन के लिए आवश्यक पोषक आहार पैदा करते हैं। ये पीढ़ी दर पीढ़ी यह काम कर रहे हैं और देश के निर्माण में चुपचाप अपना योगदान दे रहे हैं। देश के पशुधन को बिना जमीन और संसाधन के लगातार जीवित और संवर्धित करते रहना भी भारत की लोक बिरादरी का अनोखा कौशल है। भारत की इतनी बड़ी लोक बिरादरी अपनी अनोखी जीवन यात्रा में बिना किसी को परेशान किए अनगिनत उत्पादक कार्यों में लगी है। वह बिना किसी अपेक्षा के अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल करती है। दूसरी तरफ भारत के सत्तारूढ़ समूह हर काम इस अपेक्षा से करते हैं कि उनकी सत्ता और संगठन मजबूत हो। मूल सवाल जिसका जवाब हम खोज रहे हैं कि सत्ता हासिल तो हो गई, अब लोकजीवन की बुनियादी समस्याओं का टिकाऊ व स्थायी समाधान सत्तारूढ़ दल और लोक समाज कैसे निकाले? कैसे आम जन खुशहाल हो? मूलभूत सवाल फिर वहीं आ खड़ा होता है कि सत्ता हासिल करने का मूल मकसद क्या है? हुकूमत की ताकत को लोगों को बताना कि देखो हम हुक्मरान हंै और आप हमारे हुकुम के पालनकर्ता हैं? सत्तारूढ़ जमात इसी दृष्टिहीनता के कारण कालजयी नहीं होती है।
हुकूमतों की अदला-बदली तो चलती ही रहती है, पर जब भी कोई राजनीतिक दल सत्ता में आता है, तो उसे यह याद रखना चाहिए कि लोगों की ताकत से ही वह सत्तारूढ़ हुआ है। लोगों की ताकत ही सबसे बड़ी ताकत होती है। सत्तारूढ़ दल लोगों के मूलभूत सवालों का समाधान यदि नहीं खोज पाए, तो लोग सत्ता की सारी शक्तियों को इतिहास में बदलने की सर्वोच्च शक्ति अपने दिल-दिमाग में निरंतर सहेजकर रखे होते हैं और जरूरत होने पर इसका भरपूर इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचकते। राज करने वाले इतिहास बन जाते हैं, पर लोक समाज अपने आप में सनातन प्रवाह के रूप में निरन्तर नए-नए रास्ते खोज कर अपनी शक्ति बनाए रखता है। राजनीतिक दल लोक समाज से ही सत्तारूढ़ होने की ताकत हासिल करते हैं। सत्तारूढ़ समूह आभासी रूप में शक्ति सम्पन्न भले ही लगते हों, पर मूल शक्ति या ताकत तो लोगों की ही होती है। लोक समाज और राज्य की शक्ति के बीच आपसी सहयोग-समन्वय आवश्यक है, अन्यथा अशांति के कारण दोनों की शक्ति का क्षरण होगा।
आबादी को देश की ताकत बना सकती है सरकार
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